हर साल 1 मई को भारत सहित दुनिया भर में मजदूर दिवस मनाया जाता है — एक दिन जो न केवल श्रमिकों के अधिकारों की याद दिलाता है, बल्कि उन हाथों की अहमियत भी दर्शाता है जो देश की नींव को मजबूत करते हैं।
भारत में मजदूर दिवस की शुरुआत 1923 में चेन्नई से हुई थी, जब पहली बार इस दिन को औपचारिक रूप से मान्यता दी गई। तब से लेकर आज तक, यह दिन देश के निर्माण में लगे करोड़ों श्रमिकों की मेहनत, संघर्ष और समर्पण को सम्मान देने का प्रतीक बन गया है।
“श्रम ही शक्ति है”: आधुनिक भारत का मूल मंत्र
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज मजदूर दिवस पर देशवासियों को संबोधित करते हुए कहा:
“श्रम केवल आर्थिक उत्पादन का माध्यम नहीं है, यह भारत के आत्मनिर्भर भविष्य की बुनियाद है।“
सरकार की कई योजनाएं — जैसे ई-श्रम पोर्टल, प्रधानमंत्री श्रम योगी मान-धन योजना, और मनरेगा — मजदूरों को सामाजिक सुरक्षा देने की दिशा में बड़ा कदम साबित हुई हैं।
एक ईंट से इमारत, एक पसीने की बूंद से भविष्य
मजदूर केवल निर्माण स्थलों पर काम करने वाले लोग नहीं होते। वे खेतों में फसल उगाते हैं, सड़कों का निर्माण करते हैं, उद्योगों में उत्पादन करते हैं और घरों में सहायता भी करते हैं। चाहे वह ईंट-गारा जोड़ने वाला मिस्त्री हो या कपड़े सिलने वाली महिला श्रमिक — हर किसी का योगदान अद्वितीय है।
मुंबई की रेखा यादव, जो एक घरेलू सहायिका हैं, कहती हैं:
“हमारा काम छोटा हो सकता है, लेकिन उसका असर बहुत बड़ा होता है। जब हमें सम्मान और अधिकार मिलते हैं, तब हम और बेहतर काम करते हैं।“
मजदूरों को चाहिए सम्मान, न सिर्फ एक दिन का ध्यान
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर भारत को विकसित राष्ट्र बनाना है, तो असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को स्थायी सुरक्षा, कौशल प्रशिक्षण और गरिमापूर्ण जीवन देने की आवश्यकता है।
इस मजदूर दिवस पर यह संकल्प लें कि श्रमिकों को केवल दान या करुणा की नहीं, सम्मान, अवसर और न्याय की जरूरत है।