भारतीय बीमा कंपनियां कई गंभीर बीमारियों को पॉलिसी में स्थायी रूप से बाहर रखती हैं। यानी बीमा लेने के बाद भी इन बीमारियों के इलाज का खर्च नहीं मिलेगा। प्रमुख अपवर्जनों में शामिल हैं:
- मिर्गी, लकवा, और जन्मजात हृदय रोग
- क्रॉनिक लिवर व किडनी डिज़ीज
- अल्जाइमर, पार्किंसन, मल्टीपल स्क्लेरोसिस
- HIV/AIDS, हेपेटाइटिस बी
- कुछ प्रकार के कैंसर
- सुनने की क्षमता में कमी और त्वचा संबंधी रोग
बीमा के बावजूद, इन बीमारियों के इलाज में पूरी लागत मरीज को खुद उठानी पड़ती है।
प्री-एग्ज़िस्टिंग कंडीशन: 48 महीने का नियम सबसे बड़ा अड़ंगा
बीमा कंपनियां किसी भी बीमारी को “प्री-एग्ज़िस्टिंग” यानी पहले से मौजूद बताकर उसे कवर से बाहर कर सकती हैं, अगर वह बीमारी पॉलिसी खरीदने से 48 महीने पहले डायग्नोज हो चुकी हो।
इनमें सबसे आम हैं:
- डायबिटीज
- हाई ब्लड प्रेशर
- अस्थमा
- थायरॉइड संबंधी समस्याएं
- आर्थराइटिस
यह नियम उन लोगों पर सबसे भारी पड़ता है जो सच में इलाज के लिए बीमा लेना चाहते हैं।
2 साल तक इंतजार कीजिए: इलाज अभी नहीं मिलेगा
बीमा कंपनियों ने कुछ बीमारियों और सर्जरी के लिए 2 साल का फिक्स्ड वेटिंग पीरियड रखा है। यानी पॉलिसी लेने के दो साल तक इनका खर्च कवर नहीं किया जाएगा।
इस सूची में शामिल हैं:
- मोतियाबिंद
- किडनी स्टोन
- हर्निया
- घुटने व जोड़ बदलने की सर्जरी
- साइनस, टॉन्सिल, नाक की समस्या
- ऑस्टियोआर्थराइटिस, ऑस्टियोपोरोसिस
- वैरिकोज़ वेन्स
अगर इलाज जरूरी हो और दो साल पूरे न हुए हों, तो खर्च अपनी जेब से करना होगा।
नई ज़रूरतें, लेकिन बीमा अब भी पुराने ढर्रे पर
आज IVF से लेकर डेंटल और विज़न ट्रीटमेंट तक आम हो चुके हैं, लेकिन बीमा पॉलिसियाँ इन्हें “ग़ैर-ज़रूरी खर्च” बताकर बाहर कर देती हैं।
ये प्रक्रियाएं भी कवर से बाहर हैं:
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कॉस्मेटिक सर्जरी
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इनफर्टिलिटी ट्रीटमेंट (IVF)
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डेंटल, विज़न, और हियरिंग एड
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वज़न घटाने की सर्जरी
यानी पॉलिसी के बावजूद ये सब खर्च बीमाधारक को ही उठाना होगा।
ET विश्लेषण: पारदर्शिता और जागरूकता समय की मांग
भारत में हेल्थ इंश्योरेंस की मांग लगातार बढ़ रही है, लेकिन जिस तरह की बीमारियाँ और इलाज कवर से बाहर हैं, वह एक बड़ी चुनौती बन चुका है। बीमाधारकों को पॉलिसी खरीदने से पहले वेटिंग पीरियड, प्री-एग्ज़िस्टिंग कंडीशन और स्थायी अपवर्जन को अच्छे से समझना होगा।
सरकार और बीमा नियामकों को भी चाहिए कि इस सेक्टर में पारदर्शिता लाएं और ग्राहकों के हित में नीतियाँ बनाएं, ताकि “हेल्थ इंश्योरेंस” नाम सिर्फ़ एक भ्रम न रह जाए।