महाभारत के युद्धभूमि पर अर्जुन के संशय को दूर करने वाले कृष्ण ने दिखाया कि सच्चा नेतृत्व आदेश देने में नहीं, बल्कि दिशा देने में है।
उनका संवाद “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन” आज भी कंपनियों के लिए उतना ही प्रासंगिक है—काम पर ध्यान, परिणाम पर नहीं। नेतृत्व विशेषज्ञों का कहना है कि यही मंत्र तनावपूर्ण कॉरपोरेट माहौल में टीम को प्रेरित रखने का आधार बन सकता है।
संकट प्रबंधन और रणनीति
महाभारत की कथा में कृष्ण ने लगातार यह दिखाया कि जटिल परिस्थितियों में कैसे संतुलन साधा जाए। आधुनिक कॉरपोरेट संदर्भ में यह दृष्टिकोण ‘क्राइसिस मैनेजमेंट’ की परिभाषा तय करता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि जब किसी CEO या प्रबंधक को कठिन निर्णय लेना पड़ता है, तो कृष्ण की रणनीतिक सोच—दीर्घकालिक दृष्टि और नैतिक संतुलन—सबसे बड़ा मार्गदर्शन देती है।
नैतिकता और पारदर्शिता की कसौटी
आज कंपनियाँ केवल मुनाफे से नहीं, बल्कि अपनी सामाजिक ज़िम्मेदारी और पारदर्शिता से भी आँकी जाती हैं। कृष्ण का विचार—“धर्मो रक्षति रक्षितः”—यही संदेश देता है कि टिकाऊ सफलता वही है, जिसकी जड़ें नैतिकता में हों।
कई उद्योग जगत विशेषज्ञ मानते हैं कि यही सोच कॉरपोरेट गवर्नेंस और CSR (कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी) की नींव है।
मानवीयता और आनंद का संतुलन
बचपन में ‘माखनचोर’ के रूप में विख्यात कृष्ण जीवन की चंचलता और सादगी का संदेश भी देते हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि यह पहलू कॉरपोरेट तनाव और लक्ष्य-प्रधान जीवन के बीच संतुलन बनाने की प्रेरणा देता है।
उनके अनुसार, सफलता केवल उपलब्धियों का नाम नहीं, बल्कि जीवन का आनंद लेने और मानवीय मूल्यों को बनाए रखने से ही पूरी होती है।
कृष्ण का जीवन और गीता केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि नेतृत्व, रणनीति और नैतिकता के आधुनिक पाठ भी हैं। कॉरपोरेट बोर्डरूम से लेकर व्यक्तिगत जीवन तक, उनके उपदेश यह साबित करते हैं कि सहस्रों वर्ष पुराना ज्ञान आज भी उतना ही जीवंत और प्रासंगिक है।