सेवानिवृत्त रेलवे अधिकारी एक नए और खतरनाक साइबर अपराध का शिकार हो गए, जिसमें उन्हें कथित “डिजिटल गिरफ्तारी” के डर से ₹35 लाख ट्रांसफर करने पड़े।
डिजिटल गिरफ्तारी का नाटक
अधिकारियों के अनुसार, पीड़ित को एक कॉल प्राप्त हुआ जिसमें कॉलर ने खुद को केंद्रीय एजेंसी का सदस्य बताया और मनी लॉन्ड्रिंग व ड्रग तस्करी जैसे गंभीर अपराधों में फंसाने की धमकी दी। इसके बाद वीडियो कॉल पर एक नकली “डिजिटल अरेस्ट” दिखाया गया। भयभीत अधिकारी ने कानूनी कार्रवाई से बचने के लिए अलग-अलग खातों में कुल ₹35 लाख भेज दिए।
बाद में जब परिवार और स्थानीय पुलिस से संपर्क किया गया, तब पता चला कि यह संगठित साइबर ठगी का हिस्सा था।
पुलिस की चेतावनी
स्थानीय साइबर सेल ने इस घटना के बाद नागरिकों को आगाह किया है। अधिकारियों ने कहा कि कोई भी वैध एजेंसी न तो फोन पर जांच करती है और न ही धनराशि की मांग करती है।
विशेषज्ञ की राय
साइबर अपराध विशेषज्ञ और पूर्व आईपीएस प्रो. त्रिवेणी सिंह ने कहा, “डिजिटल गिरफ्तारी साइबर अपराधियों की सबसे खतरनाक चालों में से एक है। वे पीड़ित को मनोवैज्ञानिक दबाव में डालते हैं और उसे यह विश्वास दिलाते हैं कि यदि तुरंत पैसा नहीं दिया गया तो कानूनी मुसीबत आ जाएगी। यह जरूरी है कि लोग ऐसे कॉल्स पर घबराएँ नहीं, बल्कि तुरंत पुलिस या साइबर हेल्पलाइन से संपर्क करें।”
सुरक्षा उपाय
- विशेषज्ञों के अनुसार, ऐसे मामलों से बचाव के लिए:
- संदिग्ध कॉल मिलने पर बातचीत रिकॉर्ड करें और तुरंत साइबर हेल्पलाइन (1930) या cybercrime.gov.in पर शिकायत करें।
- किसी भी स्थिति में फोन पर बैंकिंग जानकारी या ओटीपी साझा न करें।
- धनराशि ट्रांसफर करने से पहले परिवार या कानूनी सलाहकार से परामर्श लें।
गहरी चिंता
इस घटना ने एक बार फिर दिखाया है कि कैसे तकनीक का दुरुपयोग कर वरिष्ठ नागरिकों और सेवानिवृत्त अधिकारियों को निशाना बनाया जा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि बढ़ते मामलों को देखते हुए, पुलिस और बैंकिंग संस्थानों को जागरूकता अभियानों को और मजबूत करना चाहिए।