अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक ऐसा कदम उठाया है जिससे भारतीय पेशेवरों और अमेरिकी कंपनियों में काम करने वाले विदेशी कर्मियों को बड़ा आर्थिक झटका लग सकता है। ट्रंप प्रशासन ने H-1B वीज़ा की फीस को 215 डॉलर से बढ़ाकर सीधे 1 लाख डॉलर प्रति वर्ष कर दिया है। यह बढ़ोतरी भारतीय आईटी और टेक सेक्टर के हजारों कर्मचारियों को प्रभावित करेगी।
सिर्फ इतना ही नहीं, ट्रंप प्रशासन ने वीज़ा नीति में बड़े बदलाव करते हुए ट्रंप गोल्ड कार्ड, ट्रंप प्लेटिनम कार्ड और ट्रंप कॉर्पोरेट गोल्ड कार्ड जैसे नए प्रोग्राम की घोषणा की है। इनका दावा है कि ये कार्ड विदेशी प्रोफेशनल्स और कंपनियों को “विशेष अधिकार” देंगे, लेकिन कीमत इतनी ज्यादा रखी गई है कि केवल सीमित लोग और कंपनियां ही इन्हें ले पाएंगी।
क्या है ट्रंप गोल्ड कार्ड
टारगेट: व्यक्तिगत आवेदक
कीमत: 1 मिलियन डॉलर
फायदा: पूरे अमेरिका में काम करने और रहने की छूट, बैकग्राउंड चेक के बाद कार्ड जारी किया जाएगा।
क्या है ट्रंप प्लेटिनम कार्ड
टारगेट: व्यक्तिगत आवेदक
कीमत: 5 मिलियन डॉलर
फायदा: अमेरिका में 270 दिन तक रहने की छूट और गैर-अमेरिकी आय पर टैक्स नहीं।
क्या है ट्रंप कॉर्पोरेट गोल्ड कार्ड
टारगेट: विदेशी कर्मचारियों को रखने वाली कंपनियां
कीमत: 2 मिलियन डॉलर
फायदा: कार्ड को एक कर्मचारी से दूसरे में ट्रांसफर करने की सुविधा।
ट्रंप प्रशासन का कहना है कि इन योजनाओं का मकसद “अमेरिकी वर्कफोर्स को सुरक्षित रखना और सिर्फ ‘असाधारण प्रतिभा’ वाले लोगों को अमेरिका लाना” है। लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार इतनी ऊंची फीस से अमेरिकी कंपनियों की लागत बढ़ेगी और भारतीय पेशेवरों के अवसर सीमित हो जाएंगे।
अमेरिका में चुनावी माहौल के बीच यह कदम कई सवाल भी खड़े कर रहा है। इमिग्रेशन वकीलों और टेक इंडस्ट्री के नेताओं का कहना है कि यह कदम न केवल कानूनी चुनौतियों का सामना करेगा, बल्कि अमेरिकी टेक सेक्टर में विदेशी प्रतिभाओं की कमी भी पैदा कर सकता है।