आज़ादी के 78 साल बाद भारत का आत्मनिर्भरता का सफर केवल आर्थिक और सामरिक क्षेत्रों तक सीमित नहीं है। अब यह यात्रा विज्ञान के क्षेत्र में, खासकर जीनोमिक्स में, एक नई ऊंचाई पर पहुंच चुकी है — जहां भारतीय जीनोम का नक्शा न केवल स्वास्थ्य नवाचार का उपकरण बन रहा है, बल्कि वैज्ञानिक संप्रभुता का प्रतीक भी है।
अपनी ही पहचान का मानचित्र
2020 में शुरू हुआ जीनोम इंडिया प्रोजेक्ट 10,000 भारतीयों का पूरा जीनोम डेटा तैयार कर रहा है। इस पहल का नेतृत्व इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के सेंटर फॉर ब्रेन रिसर्च के वैज्ञानिक कर रहे हैं, जिसका उद्देश्य कैंसर, मानसिक बीमारियों और अन्य गंभीर रोगों के आनुवंशिक कारणों को समझना है।
इस साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन 10,000 जीनोम का डेटा औपचारिक रूप से जारी किया। अब यह डेटा इंडियन बायोलॉजिकल डेटा सेंटर में नियंत्रित पहुंच के तहत उपलब्ध है, जो बायोटेक्नोलॉजी और प्रिसीजन हेल्थकेयर में भारत के लिए एक ऐतिहासिक मील का पत्थर है।
आदिवासी जीनोम परियोजना से समावेशी विज्ञान
गुजरात ने भारत की पहली आदिवासी जीनोम सीक्वेंसिंग परियोजना शुरू की है, जिसके तहत 17 जिलों के 2,000 आदिवासी व्यक्तियों के जीनोम का अध्ययन होगा। इसका उद्देश्य स्वास्थ्य अनुसंधान और रोगों की शुरुआती पहचान में इन समुदायों को शामिल करना है — यह वैज्ञानिक समानता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
संस्थागत क्षमता और विशेषज्ञता
दिल्ली स्थित सीएसआईआर-आईजीआईबी (इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी) और पश्चिम बंगाल स्थित एनआईबीएमजी (नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ बायोमेडिकल जीनोमिक्स) भारत में जीनोमिक्स अनुसंधान, प्रशिक्षण और चिकित्सा नवाचार के प्रमुख केंद्र बन चुके हैं।
आईजीआईबी का GUaRDIAN नेटवर्क दुर्लभ आनुवंशिक रोगों की पहचान में अहम भूमिका निभा रहा है, जबकि एनआईबीएमजी बायोमेडिकल जीनोमिक्स में क्षमता निर्माण पर केंद्रित है।
नए मोर्चे और नैतिक बहसें
विश्वभर में CRISPR जीन-एडिटिंग तकनीक पर चर्चा तेज है और भारत इस क्षेत्र में नैतिक नेतृत्व की संभावना देख रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि देश को स्वास्थ्य, कृषि और पर्यावरण में जिम्मेदार जीन-संपादन के लिए एक राष्ट्रीय कार्यक्रम शुरू करना चाहिए।
इस वर्ष मई में भारत ने पहली बार जीन-संपादित धान की किस्में — DRR धान 100 और पुसा डीएसटी राइस 1 — पेश कीं। इससे कृषि में नए अवसर तो खुले हैं, लेकिन नियामक ढांचे को लेकर बहस भी तेज हुई है।
महत्त्व क्यों है
भारत की जीनोमिक पहल केवल वैज्ञानिक उपलब्धि नहीं है, बल्कि यह आत्मनिर्भरता और वैश्विक नेतृत्व का भी संकेत है। अपने नागरिकों का जीनोम मैप करना, हाशिये पर रहने वाले समुदायों को शोध में शामिल करना और मजबूत अनुसंधान संस्थान खड़े करना — यह सब दिखाता है कि भारत अब केवल तकनीक का उपभोक्ता नहीं, बल्कि निर्माता भी है।
आज़ादी के 78वें वर्ष पर, भारत का संघर्ष अब सीमाओं के लिए नहीं बल्कि ज्ञान, पहचान और स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए प्रयोगशालाओं और डेटा केंद्रों में जारी है।