तेज़ रफ्तार ज़िंदगी और लगातार बढ़ते तनाव के बीच, अक्सर कॉर्टिसोल को “स्ट्रेस हार्मोन” कहकर दोषी ठहराया जाता है। नींद की कमी, पेट की चर्बी और थकान—सबका कारण इसे माना जाता है। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि असली समस्या कई बार “ज़्यादा कॉर्टिसोल” नहीं, बल्कि कॉर्टिसोल रेज़िस्टेंस होती है—एक स्थिति जिसमें शरीर कॉर्टिसोल पर सही ढंग से प्रतिक्रिया देना बंद कर देता है।
लंबे समय तक तनाव, खराब नींद और लगातार सूजन इस हार्मोन की असरकारिता को कम कर देते हैं। नतीजतन, भले ही कॉर्टिसोल का स्तर सामान्य या ऊँचा हो, शरीर उसे “सुनना” बंद कर देता है।
आठ छिपे हुए संकेत
- पेट पर चर्बी जमा होना
भोजन की आदतों में बदलाव न होने के बावजूद कमर और पेट पर चर्बी बढ़ना कॉर्टिसोल रेज़िस्टेंस का पहला संकेत हो सकता है। - लगातार थकान
पर्याप्त आराम के बाद भी थकान दूर न होना, हार्मोन की बिगड़ी भूमिका को दिखाता है। - हार्मोनल असंतुलन
मासिक धर्म में गड़बड़ी, थायरॉइड की दिक़्क़तें या अन्य हार्मोनल उतार-चढ़ाव इससे जुड़े हो सकते हैं। - कमज़ोर प्रतिरक्षा तंत्र
बार-बार बीमार होना या धीरे-धीरे घाव भरना—ये संकेत हैं कि कॉर्टिसोल अपना काम नहीं कर पा रहा। - चिड़चिड़ापन और ब्रेन फॉग
मनोदशा में उतार-चढ़ाव, चिंता और ध्यान न लगना कॉर्टिसोल रेज़िस्टेंस से जुड़ा पाया गया है। - क्रॉनिक सूजन और दर्द
जोड़ों में अकड़न, लगातार बॉडी पेन और सूजन इसका लक्षण हो सकते हैं। - नींद की गड़बड़ी
देर रात तक नींद न आना, रात में बार-बार जागना या सुबह बहुत जल्दी उठ जाना—ये सब संकेत हैं। - ब्लड शुगर में उतार-चढ़ाव
अचानक भूख लगना, मीठे की तलब या प्री-डायबिटीज़ जैसी स्थिति कॉर्टिसोल रेज़िस्टेंस से जुड़ी हो सकती है।
सिर्फ़ “ज़्यादा” कॉर्टिसोल नहीं
विशेषज्ञ मानते हैं कि कॉर्टिसोल रेज़िस्टेंस का मतलब यह नहीं कि शरीर हार्मोन कम बना रहा है। असली समस्या यह है कि कोशिकाएँ उस पर प्रतिक्रिया करना बंद कर देती हैं। यही वजह है कि लक्षण दिखते हैं, लेकिन रिपोर्ट में स्तर सामान्य आता है।
डॉक्टरों का कहना है कि इन संकेतों को नज़रअंदाज़ कर देना, या सिर्फ़ “लाइफ़स्टाइल प्रॉब्लम” समझ लेना, ख़तरनाक हो सकता है। इलाज के लिए तनाव प्रबंधन, बेहतर नींद, सूजन नियंत्रित करना और सही खानपान सबसे अहम है।