बेंगलुरु के एक शांत योग केंद्र में कुछ लोग आंखें बंद किए बैठे हैं, समान लय में श्वास ले रहे हैं। कोई मोबाइल नहीं, कोई व्यवधान नहीं — केवल सांस। यह दृश्य किसी प्राचीन कथा का नहीं, बल्कि आधुनिक समय का है, जहां हजारों साल पुरानी भारतीय विधा प्राणायाम अब वैश्विक वैज्ञानिक समुदाय का ध्यान आकर्षित कर रही है।
जब पूरी दुनिया तनाव, अवसाद और जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों से जूझ रही है, तो प्राचीन भारतीय योगिक परंपरा का यह हिस्सा एक बार फिर चिकित्सा और मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में नई आशा लेकर उभरा है।
आधुनिक विज्ञान के दायरे में प्राचीन श्वास-विद्या
प्राणायाम योग का एक प्रमुख अंग है, जिसमें श्वास को नियंत्रित करने की अनेक तकनीकें शामिल हैं — जैसे नाड़ी शोधन, भ्रामरी, और कपालभाति। सदियों तक भारत के गुरुकुलों और आश्रमों में सिखाई जाने वाली यह विद्या अब एमआरआई स्कैन और हार्ट रेट मॉनिटर पर परीक्षण के लिए लाई जा रही है।
एम्स (AIIMS), हार्वर्ड मेडिकल स्कूल और यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया जैसी संस्थाओं द्वारा किए गए अध्ययन दिखाते हैं कि प्राणायाम के नियमित अभ्यास से तनाव हार्मोन (कॉर्टिसोल) में कमी आती है, ब्लड प्रेशर स्थिर रहता है और मानसिक संतुलन बेहतर होता है।
“यह विज्ञान और अध्यात्म के बीच की लड़ाई नहीं है,” कहती हैं डॉ. शालिनी राव, NIMHANS की न्यूरोफिज़ियोलॉजिस्ट। “यह समझने की बात है कि श्वास का नियंत्रित अभ्यास कैसे हमारे मस्तिष्क और शरीर की कार्यप्रणाली को गहराई से प्रभावित करता है।”
तनाव का हल: दवा नहीं, श्वास
तनाव आज का ‘मूक हत्यारा’ बन गया है, जो उच्च रक्तचाप, डायबिटीज और हृदय रोग जैसे अनेक रोगों का मूल है। प्राणायाम शरीर के ‘फाइट या फ्लाइट’ (लड़ो या भागो) प्रतिक्रिया को कम करके ‘रेस्ट और रिपेयर’ (आराम और पुनर्निर्माण) प्रणाली को सक्रिय करता है।
Journal of Clinical Psychology में प्रकाशित एक अध्ययन में, मात्र 20 मिनट प्रतिदिन प्राणायाम करने वाले प्रतिभागियों में चार सप्ताह के भीतर 50% तक तनाव और चिंता में कमी देखी गई। अन्य अध्ययनों में नींद में सुधार, हृदय गति में स्थिरता और अवसाद के लक्षणों में कमी पाई गई।
स्वीडन स्थित न्यूरोसाइंटिस्ट डॉ. एरिक लिंडाहल कहते हैं, “कुछ विशेष श्वास विधियां मस्तिष्क के तनाव केंद्रों को सीधे प्रभावित करती हैं। यह केवल मनोविज्ञान नहीं, जीवविज्ञान है।”
लंबी उम्र की ओर एक श्वास
एक और रोचक पहलू यह है कि प्राणायाम का प्रभाव शरीर के टेलोमेयर (DNA के सिरों पर सुरक्षा देने वाले तत्व) पर भी देखा गया है। एक संयुक्त अध्ययन में पाया गया कि प्राणायाम और ध्यान से telomerase एंजाइम की सक्रियता बढ़ती है, जिससे कोशिकाओं की उम्र बढ़ सकती है और उम्र बढ़ने की प्रक्रिया धीमी हो सकती है।
“श्वास शरीर के हर कोशिकीय स्तर पर परिवर्तन ला सकती है,” कहती हैं डॉ. प्रिया शर्मा, जो इस अध्ययन की प्रमुख शोधकर्ता हैं। “यह सिर्फ आराम की प्रक्रिया नहीं, बल्कि बायोलॉजिकल यंगिंग को प्रभावित करने वाला साधन है।”
अस्पतालों से कॉर्पोरेट तक: श्वास का नया सफर
आज कई अस्पताल, कॉर्पोरेट ऑफिस और वेलनेस सेंटर प्राणायाम को अपनी स्वास्थ्य योजनाओं में शामिल कर रहे हैं। भारत सरकार का आयुष मंत्रालय और ICMR भी प्राणायाम को सार्वजनिक स्वास्थ्य नीति का हिस्सा बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं।
हालांकि विशेषज्ञ सावधानी भी बरतने को कहते हैं।
“प्राणायाम कोई ट्रेंड या जादू नहीं है,” कहती हैं डॉ. राव। “यह एक अनुशासित अभ्यास है, जिसे समझ और निरंतरता के साथ करना होता है।”
आज जब दुनिया तनाव और जीवनशैली की बीमारियों से जूझ रही है, एक प्राचीन भारतीय तकनीक – केवल सांसों पर नियंत्रण – चिकित्सा विज्ञान के लिए उम्मीद की नई किरण बन रही है।