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Home»Motivation»पूर्व डीएसपी शैलेन्द्र सिंह: जिसने माफिया को ललकारा, अब बैलों से बना रहे हैं ऊर्जा और ज़मीन से उगा रहे हैं भविष्य
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पूर्व डीएसपी शैलेन्द्र सिंह: जिसने माफिया को ललकारा, अब बैलों से बना रहे हैं ऊर्जा और ज़मीन से उगा रहे हैं भविष्य

BharatSpeaksBy BharatSpeaksJuly 29, 2025Updated:July 29, 2025No Comments4 Mins Read
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कानून से खेत तक — पूर्व डीएसपी शैलेन्द्र सिंह
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2004 में मुख्तार अंसारी पर पोटा लगाने वाले पूर्व पुलिस अधिकारी अब चंदौली में जैविक खेती, पशुपालन और बैलों से ऊर्जा उत्पादन कर रहे हैं। उनका काम अब वैश्विक पर्यावरणीय प्रणाली के लिए एक प्रेरणादायक मॉडल बन चुका है।

जब पुलिस की वर्दी ने लिया माफिया से टकराव का फैसला

वर्ष 2004 में उत्तर प्रदेश पुलिस के तत्कालीन डिप्टी एसपी शैलेन्द्र सिंह ने एक ऐसा साहसिक कदम उठाया जो आज भी चर्चा में है। उन्होंने पूर्वांचल के कुख्यात माफिया और तत्कालीन विधायक मुख्तार अंसारी पर पोटा (POTA) जैसे सख्त आतंकवाद विरोधी कानून के तहत मामला दर्ज किया और उसके गैंग से लाइट मशीन गन (LMG) बरामद की। यह कार्रवाई उस दौर में बड़ी बात थी, जब माफिया और राजनीति का गठजोड़ चरम पर था।

लेकिन यह बहादुरी उन्हें भारी पड़ी। महज़ पंद्रह दिनों के भीतर सरकार ने उन पर दबाव बनाकर इस्तीफा ले लिया। उनके खिलाफ सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का केस दर्ज कर दिया गया। उस समय की राजनीतिक व्यवस्था ने अपराधियों को संरक्षण और ईमानदार अफसरों को सज़ा दी।

न्याय की लड़ाई से खेतों तक का सफर

वर्षों तक कानूनी लड़ाई के बाद, 2021 में योगी आदित्यनाथ सरकार ने उनके खिलाफ दर्ज मामला वापस ले लिया। लेकिन तब तक शैलेन्द्र सिंह ने तय कर लिया था कि वह अब सिस्टम का हिस्सा नहीं बनेंगे, बल्कि स्वावलंबी जीवन अपनाएंगे।

उन्होंने चंदौली के एक गांव में खेती और पशुपालन शुरू किया। वह आज जैविक खेती, देसी गायों का पालन, और पारंपरिक तरीकों से बैलों के माध्यम से ऊर्जा उत्पादन कर रहे हैं। बैलों से जुताई के साथ-साथ, उन्होंने एक ऐसा सेटअप तैयार किया है जिससे बैल से बिजली उत्पादन किया जा सकता है। यह न केवल तकनीकी रूप से अभिनव है बल्कि ग्लोबल एनवायरनमेंटल इकोसिस्टम (वैश्विक पर्यावरणीय पारिस्थितिकी तंत्र) के लिए भी महत्वपूर्ण योगदान है।

अब वैश्विक सराहना का केंद्र बना उनका फार्महाउस

आज उनके द्वारा शुरू किया गया यह कार्य सिर्फ स्थानीय नहीं रहा। लखनऊ स्थित उनके फार्महाउस को अब पर्यावरण प्रेमियों, नीति निर्माताओं, जलवायु शोधकर्ताओं, क्लाइमेट एक्टिविस्ट्स और हरित उद्यमियों के लिए एक “लाइव लर्निंग मॉडल” के रूप में देखा जा रहा है।
उनकी जैविक खेती और पशु आधारित ऊर्जा उत्पादन प्रणाली को वैश्विक मंचों पर सराहना मिल रही है। ऐसे समय में जब पूरी दुनिया जलवायु संकट और पारंपरिक ऊर्जा संसाधनों की क्षीणता से जूझ रही है, शैलेन्द्र सिंह का यह नवाचार एक उम्मीद की किरण बनकर उभरा है।

उन्होंने दिखा दिया है कि स्थानीय समाधान भी वैश्विक बदलाव ला सकते हैं।

जिसने कभी आतंक पैदा किया, उसका अंत साक्षी बनकर देखा

मुख्तार अंसारी, जो एक समय में पूर्वांचल में पुलिस की मौजूदगी में हथियारबंद काफिले के साथ चलता था, आज जेल में है। योगी सरकार के तहत माफिया के खिलाफ चलाए गए अभियान में अंसारी का राजनीतिक और आपराधिक साम्राज्य समाप्त हो चुका है। शैलेन्द्र सिंह यह सब चुपचाप, दूर से देख रहे हैं। उनके लिए यह किसी व्यक्तिगत जीत से कम नहीं है।

उन्होंने The Print को दिए एक इंटरव्यू में कहा:
“20 साल पहले जब मैंने ये कदम उठाया, तब कोई साथ नहीं था। आज पूरा राज्य माफिया के खिलाफ खड़ा है। ये मेरे लिए न्याय से बढ़कर है।”

“नंदी रथ” – बैल से चलने वाली ऊर्जा क्रांति

शैलेन्द्र सिंह की सबसे अनोखी और प्रशंसनीय पहल है उनका “नंदी रथ” — एक ऐसी विशेष बैलगाड़ी जिसे उन्होंने खुद डिज़ाइन किया है और जो बैलों की मदद से बिजली पैदा करती है। यह नंदी रथ एक घूमने वाले प्लेटफॉर्म से जुड़ा होता है, जिसमें बैल चक्कर लगाते हैं और उनकी गति से एक जेनरेटर चलता है, जिससे बिजली उत्पन्न होती है।

नंदी रथ आज भारत में देसी तकनीक से बनी टिकाऊ ऊर्जा का एक मॉडल बन गया है। यह ग्रामीण भारत के लिए अक्षय ऊर्जा का रास्ता खोलने के साथ-साथ पारंपरिक पशुपालन को नई ऊर्जा और उद्देश्य भी दे रहा है।

मिट्टी में मिला संतुलन, बैलों से मिल रही ऊर्जा

अब शैलेन्द्र सिंह की ज़िंदगी शांत, पर अर्थपूर्ण है। वे कहते हैं कि
“वर्दी में रहते हुए मैंने व्यवस्था को सुधारने की कोशिश की, लेकिन जब व्यवस्था ही नहीं बदली, तो मैंने खुद को बदल लिया। अब मैं ज़मीन से जुड़कर समाज को दिखा रहा हूं कि स्वच्छता, आत्मनिर्भरता और ईमानदारी के साथ भी जीवन जिया जा सकता है।”

उनका काम केवल खेती नहीं, बल्कि एक हरित क्रांति का आधार बन चुका है।

 वर्दी से आगे भी होती है वीरता

शैलेन्द्र सिंह की कहानी सिर्फ एक पुलिस अफसर की नहीं, बल्कि उस इंसान की है जो अन्याय के खिलाफ खड़ा हुआ, सत्ता से लड़ा, स्वाभिमान नहीं छोड़ा, और अंत में एक नई दुनिया बसाई — ज़मीन पर, मिट्टी में, आत्मनिर्भरता के बीज बोकर।

उनकी पहल न केवल भारत, बल्कि विश्व पर्यावरणीय प्रणाली के लिए भी एक प्रेरणा है, जो यह दिखाती है कि स्थायित्व, तकनीक और परंपरा मिलकर एक उज्ज्वल भविष्य बना सकते हैं।

“वर्दी छिन गई, लेकिन ज़मीर और ज़मीन दोनों ने मुझे संभाल लिया।”

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