टाइप 2 डायबिटीज, इंसुलिन रेजिस्टेंस और नॉन-अल्कोहोलिक फैटी लिवर डिज़ीज (NAFLD) जैसी बीमारियाँ भारत में तेजी से बढ़ रही हैं। लेकिन हालिया रिपोर्टों और विशेषज्ञों की सलाह के अनुसार, इन बीमारियों से लड़ने का समाधान किसी जटिल दवा या तकनीक में नहीं, बल्कि हमारी दैनिक जीवनशैली में छुपा हुआ है।
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, छह साधारण और सतत जीवनशैली की आदतें इन मेटाबॉलिक बीमारियों को न केवल नियंत्रित कर सकती हैं, बल्कि कुछ मामलों में इन्हें उलट भी सकती हैं।
1. समय-सीमा आधारित उपवास (इंटरमिटेंट फास्टिंग)
खाने के बीच लंबा अंतराल रखने या दिन के 8 घंटे खाने और 16 घंटे उपवास रखने वाली आदत (16:8 पैटर्न) से शरीर में इंसुलिन संवेदनशीलता बढ़ती है और लिवर पर जमी चर्बी घटती है। यह आदत शरीर को ऊर्जा के लिए ग्लूकोज़ की बजाय फैट जलाने के लिए प्रेरित करती है।
2. भोजन के बाद हल्की सैर
हर भोजन के बाद केवल 5–10 मिनट की पैदल चाल से रक्त शर्करा (ब्लड शुगर) का स्तर बेहतर तरीके से नियंत्रित होता है। यह मांसपेशियों को ग्लूकोज़ अवशोषित करने में मदद करता है और मधुमेह के जोखिम को कम करता है।
3. लगातार गतिशील रहना
लंबे समय तक बैठे रहना मेटाबॉलिज़्म को नुकसान पहुंचाता है। हर 30–60 मिनट में कुछ कदम चलना, खड़े होना या हल्का खिंचाव करना शरीर की वसा जलाने की क्षमता और लिवर की कार्यक्षमता को बढ़ाता है।
4. पोषण से भरपूर सुबह की शुरुआत
दिन की शुरुआत गुनगुने पानी, भीगे बादाम और कद्दू के बीज से करने से न केवल पाचन सुधरता है, बल्कि यह लिवर और ब्लड शुगर को भी संतुलित रखता है। यह आदत ऊर्जा के स्तर को स्थिर बनाए रखती है।
5. हर भोजन में सब्ज़ियाँ शामिल करें
फाइबर युक्त सब्जियाँ, खासकर कम स्टार्च वाली (जैसे पालक, लौकी, फूलगोभी), हर भोजन में शामिल करने से ग्लूकोज़ का अवशोषण धीमा होता है और मेटाबॉलिक प्रोफाइल सुधरता है।
6. धूम्रपान छोड़ें, शराब सीमित करें
धूम्रपान और शराब दोनों ही लिवर और इंसुलिन रेसिस्टेंस पर बुरा असर डालते हैं। NAFLD के रोगियों के लिए ये आदतें बीमारी को और भी बढ़ा सकती हैं।
जीवनशैली बदलाव से मेटाबॉलिक सुधार संभव
विशेषज्ञों का मानना है कि जहां टाइप 1 डायबिटीज पूरी तरह से ठीक नहीं हो सकती, वहीं टाइप 2 डायबिटीज और फैटी लिवर को समय रहते सही आदतों और अनुशासित जीवनशैली से पलटा जा सकता है।
“स्वास्थ्य सिर्फ दवाओं से नहीं आता,” एक पोषण विशेषज्ञ ने कहा। “यह उन छोटे-छोटे रोज़मर्रा के फैसलों से बनता है जो हम हर भोजन, हर चाल और हर नींद के क्षण में लेते हैं।”
भारत जैसी देश में, जहाँ जीवनशैली से जुड़ी बीमारियाँ तेजी से बढ़ रही हैं, ये आदतें साधारण होते हुए भी अत्यंत प्रभावी साबित हो सकती हैं।