आज की युवा पीढ़ी, जिसे अक्सर डिजिटल स्क्रीन और तेज़ जीवनशैली का कैदी कहा जाता है, धीरे-धीरे भगवद गीता की ओर लौट रही है। मानसिक तनाव, कैरियर का दबाव और रिश्तों की जटिलताओं के बीच कृष्ण के उपदेश युवा वर्ग के लिए आशा और संतुलन का प्रतीक बनते जा रहे हैं।
डिजिटल युग में आध्यात्मिक पुनर्जागरण
इंस्टाग्राम रील्स, YouTube शॉर्ट्स और पॉडकास्ट जैसे मंच अब गीता के प्रचार-प्रसार का आधुनिक जरिया बन गए हैं। #GitaForLife अभियान ने युवाओं को छोटे-छोटे संदेशों के जरिये गीता से जोड़ा है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह प्रवृत्ति बताती है कि अध्यात्म अब पारंपरिक सीमाओं से बाहर निकलकर डिजिटल संस्कृति का हिस्सा बन चुका है।
तनाव और मानसिक स्वास्थ्य में सहारा
बढ़ती चिंता, अवसाद और ‘बर्नआउट’ से जूझ रहे युवाओं के लिए कृष्ण का संदेश—“समत्वं योग उच्यते”—हर परिस्थिति में संतुलन बनाए रखने की प्रेरणा है।
कई छात्रों और पेशेवरों का कहना है कि गीता के श्लोक पढ़ने या सुनने से उन्हें असफलताओं को स्वीकार करने और आत्मविश्वास बनाए रखने में मदद मिलती है।
कैरियर और रिश्तों के लिए मार्गदर्शन
कॉरपोरेट संस्कृति और स्टार्ट-अप माहौल में काम कर रहे युवा मानते हैं कि कृष्ण का ‘कर्मयोग’ दर्शन कार्यस्थल के दबाव और प्रतिस्पर्धा के बीच स्थिरता प्रदान करता है।
रिश्तों की उलझनों में भी कृष्ण का व्यक्तित्व—मित्र, दार्शनिक और मार्गदर्शक—युवाओं को संतुलन और स्पष्टता की राह दिखाता है।
सीमाओं से परे गीता का प्रभाव
भारत ही नहीं, विदेशों के विश्वविद्यालयों में भी गीता रीडिंग क्लब और वर्चुअल satsang लोकप्रिय हो रहे हैं। प्रवासी भारतीय युवाओं का कहना है कि कृष्ण के उपदेश उन्हें न केवल भारतीय संस्कृति से जोड़ते हैं, बल्कि जीवन की कठिनाइयों से निपटने का व्यावहारिक मार्ग भी प्रदान करते हैं।
जनरेशन Z के लिए कृष्ण अब केवल धार्मिक प्रतीक नहीं रहे। वे जीवन की चुनौतियों में मार्गदर्शन देने वाले गुरु बन चुके हैं। गीता के शाश्वत संदेश और डिजिटल युग की नई भाषा मिलकर यह सिद्ध करते हैं कि सहस्रों वर्ष पुराना ज्ञान आज भी उतना ही जीवंत और आवश्यक है।