भागदौड़ भरी ज़िंदगी, प्रदूषण और तनाव के बीच एक प्राचीन योगिक विधि फिर से लोकप्रिय हो रही है। जल नेति, जिसे योगशास्त्र में षटकर्म (शुद्धिकरण क्रियाओं) का हिस्सा माना गया है, आज आधुनिक वेलनेस कार्यक्रमों और आयुर्वेदिक उपचारों में नई जगह बना रही है। विशेषज्ञ मानते हैं कि नाक की सफाई की यह विधि न केवल श्वसन तंत्र को शुद्ध करती है बल्कि मन को स्पष्ट, रोग प्रतिरोधक क्षमता को मज़बूत और ध्यान को गहरा बनाती है।
प्राचीन से आधुनिक तक
हठयोग प्रदीपिका जैसे ग्रंथों में वर्णित जल नेति की परंपरा अब योग शिक्षण संस्थानों और स्वास्थ्य केंद्रों में दोबारा जीवंत हो रही है। इसे जूस क्लीनज़ या आधुनिक डिटॉक्स तरीकों की तरह तेज़ प्रभाव वाला न मानकर, विशेषज्ञ इसे संतुलित और स्थायी शुद्धिकरण की प्रक्रिया बताते हैं।
कैसे काम करती है यह क्रिया
जल नेति में गुनगुने, हल्के नमक मिले पानी को नेति पॉट (विशेष पात्र) की मदद से एक नथुने से प्रवाहित कर दूसरे नथुने से बाहर निकाला जाता है। इससे नाक में जमा श्लेष्मा, प्रदूषक और एलर्जी कारक बाहर निकल जाते हैं। योगिक मान्यता है कि यह प्रक्रिया नाड़ी शुद्धि के साथ-साथ दृष्टि तंत्रिका और मस्तिष्क को भी स्फूर्त करती है।
आधुनिक विज्ञान की पुष्टि
वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि नाक की सफाई से—
- साइनस और एलर्जी में राहत: नाक बंद होना, श्लेष्मा जमना और एलर्जिक राइनाइटिस जैसी समस्याएँ कम हो सकती हैं।
- सावधानी आवश्यक: विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि यह क्रिया केवल उबला हुआ, ठंडा किया हुआ या डिस्टिल्ड पानी से ही की जानी चाहिए। नल का पानी संक्रमण का ख़तरा बढ़ा सकता है।
- मानसिक संतुलन: अभ्यासकर्ता कहते हैं कि जल नेति मानसिक स्पष्टता, भावनात्मक शांति और ध्यान की गहराई में मददगार है।
अभ्यास के नियम
योगाचार्य सलाह देते हैं कि जल नेति सीखते समय प्रशिक्षित शिक्षक का मार्गदर्शन ज़रूरी है। साथ ही यह चिकित्सा का विकल्प नहीं बल्कि सहायक अभ्यास है।
जल नेति केवल पानी और नमक का साधारण प्रयोग नहीं है, बल्कि योगियों के अनुसार यह शरीर और मन को संतुलित करने का गहन साधन है। प्रदूषण और तनाव से भरी दुनिया में यह प्राचीन तकनीक आज भी एक प्रभावी शुद्धिकरण उपाय साबित हो रही है।