एंटीबायोटिक रेज़िस्टेंस की बढ़ती वैश्विक चुनौती के बीच अमेरिका के मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) के शोधकर्ताओं ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। उन्होंने ऐसी नई एंटीबायोटिक दवाएँ विकसित की हैं जो अब तक अप्रभावी साबित हो रही कई दवा-प्रतिरोधी संक्रमणों (सुपरबग्स) को मात देने में सक्षम हैं।
नई तकनीक, नए अणु
पारंपरिक दवा खोज पद्धति से अलग, MIT की टीम ने विशाल रासायनिक डेटासेट पर प्रशिक्षित जनरेटिव एआई का इस्तेमाल किया। एआई ने ऐसे दर्जनों नए यौगिक (compounds) तैयार किए जो प्राकृतिक रूप से पहले कभी नहीं मिले। इनमें से DN1 और NG1 नामक दो प्रमुख यौगिक प्रयोगशाला और पशु परीक्षणों में बेहद प्रभावी साबित हुए।
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DN1 ने मेथिसिलिन-रेज़िस्टेंट स्टैफिलोकोकस ऑरियस (MRSA) के खिलाफ मजबूत असर दिखाया।
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NG1 ने मल्टी-ड्रग रेज़िस्टेंट नेइसेरिया गोनोरिया (गंभीर यौन रोग संक्रमण) के खिलाफ सफलता हासिल की।
इन दोनों यौगिकों की कार्यप्रणाली पारंपरिक एंटीबायोटिक्स से अलग है, जिससे उम्मीद है कि ये भविष्य में भी दवा-प्रतिरोध को लंबे समय तक रोक पाएँगे।
‘दूसरा स्वर्णयुग’
MIT के वैज्ञानिकों का कहना है कि यह खोज एंटीबायोटिक्स विकास के दूसरे स्वर्णयुग का संकेत हो सकती है। जहाँ अब तक अनुसंधान पुराने रसायनों पर केंद्रित था, वहीं एआई के ज़रिए अब पूरी तरह से नए अणु डिज़ाइन किए जा सकते हैं।
आगे की राह
हालाँकि, इन दवाओं को बाज़ार तक पहुँचने में अभी समय लगेगा। इनके लिए विषाक्तता परीक्षण, मानवीय ट्रायल और कई चरणों की कठोर जाँच आवश्यक है। लेकिन शोधकर्ताओं का मानना है कि यह उपलब्धि स्वास्थ्य जगत के लिए दिशा बदलने वाली है और सुपरबग्स के खिलाफ लड़ाई में नई उम्मीद जगाती है।