शरद ऋतु आते ही भारत में भक्ति और उत्सव का रंग छा जाता है। इस मौसम में दो प्रमुख त्यौहार अक्सर एक साथ मनाए जाते हैं—नवरात्रि और दुर्गा पूजा। दोनों ही देवी दुर्गा की आराधना से जुड़े हैं, लेकिन उनकी धार्मिक परंपराएँ, क्षेत्रीय स्वरूप और सांस्कृतिक अभिव्यक्तियाँ अलग-अलग हैं।
नवरात्रि: नौ रातें उपवास और साधना की
नवरात्रि पूरे भारत में मनाया जाता है और इसका अर्थ है “नौ रातें।” इन नौ दिनों में देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा होती है। भक्त उपवास रखते हैं, अनाज, प्याज़, लहसुन और मांसाहार से परहेज़ करते हैं और फल, दूध या व्रत-विशेष आहार ग्रहण करते हैं।
उत्तर भारत में नवरात्रि रामलीला और दशहरे के साथ जुड़ता है, जबकि गुजरात और पश्चिमी भारत में गरबा और डांडिया नृत्य इसकी पहचान हैं। यहाँ नवरात्रि सिर्फ़ धार्मिक साधना ही नहीं बल्कि अनुशासन और आत्मशुद्धि का प्रतीक भी है।
दुर्गा पूजा: देवी का घर लौटना और सामूहिक उत्सव
दूसरी ओर, दुर्गा पूजा पूर्वी भारत—विशेषकर पश्चिम बंगाल, असम और ओडिशा—में सबसे बड़े सांस्कृतिक उत्सव के रूप में मनाई जाती है। इसका मूल स्वरूप देवी दुर्गा की महिषासुर पर विजय का स्मरण है।
पाँच से दस दिनों तक चलने वाले इस पर्व में भव्य पंडाल बनाए जाते हैं और देवी की विशाल प्रतिमाएँ स्थापित होती हैं। यह सिर्फ़ धार्मिक आयोजन नहीं बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक मिलन का अवसर भी है। यहाँ परंपरागत भोजन जैसे खिचड़ी, लूची, मछली और मिठाइयाँ उत्सव का अभिन्न हिस्सा हैं। नवरात्रि के उपवास के विपरीत, दुर्गा पूजा में सामूहिक दावत और उल्लास केंद्र में रहते हैं।
साझा आस्था, अलग रूप
दोनों पर्व देवी शक्ति की आराधना और विजय का प्रतीक हैं। अंतर यह है कि नवरात्रि जहाँ व्यक्तिगत साधना, उपवास और अनुशासन पर ज़ोर देती है, वहीं दुर्गा पूजा सामूहिक भक्ति, कला और भोजन का उत्सव है।
भारत की सांस्कृतिक विविधता इन दोनों त्यौहारों में झलकती है—आस्था एक है, परंपराएँ अलग। यही विविधता देश की शक्ति भी है।