लंबे समय तक ओवेरियन कैंसर को रजोनिवृत्ति (menopause) के बाद की बीमारी माना जाता था। लेकिन भारत में अब एक चिंताजनक बदलाव दिख रहा है—यह बीमारी अब 40 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं में भी सामने आने लगी है। देशभर के ऑन्कोलॉजिस्ट चेतावनी दे रहे हैं कि बढ़ते मामलों के पीछे जीवनशैली, आनुवंशिक कारण और बदलते सामाजिक पैटर्न गहरी भूमिका निभा रहे हैं।
एक मामला जिसने चिंता बढ़ाई
मुंबई की 54 वर्षीय महिला, जिन्हें कोई गंभीर बीमारी का इतिहास नहीं था लेकिन परिवार में ओवेरियन कैंसर के मामले रहे थे, ने पेट फूलने और हल्के दर्द को नज़रअंदाज़ कर दिया। जब तक जांच हुई, कैंसर स्टेज IIIC तक पहुँच चुका था। बाद में BRCA1 जीन म्यूटेशन पाया गया। इलाज में कीमोथेरेपी और सर्जरी के साथ मेंटेनेंस थेरेपी करनी पड़ी। यह मामला दिखाता है कि शुरुआती लक्षण मामूली लग सकते हैं, लेकिन बीमारी तेजी से गंभीर हो सकती है।
बढ़ते जोखिम के कारक
विशेषज्ञों के अनुसार कई परस्पर जुड़े कारण इस शुरुआती वृद्धि को बढ़ावा दे रहे हैं:
- मोटापा और मेटाबॉलिक सिंड्रोम – वज़न बढ़ना, इंसुलिन रेज़िस्टेंस और हार्मोनल असंतुलन से ओवेरियन कोशिकाओं की वृद्धि तेज होती है।
- बच्चे देर से या न होना – गर्भधारण और स्तनपान से अंडाशय को “आराम” मिलता है, जो जोखिम कम करता है। देर से मातृत्व इस सुरक्षा को घटाता है।
- पीसीओएस (PCOS) – युवतियों में बढ़ती पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम की समस्या कैंसर के जोखिम से जुड़ी है।
- आनुवंशिक कारण (BRCA1/BRCA2 म्यूटेशन) – यह जीन परिवर्तन कम उम्र में ही कैंसर का खतरा कई गुना बढ़ा देता है।
- पर्यावरण और जीवनशैली – असंतुलित खानपान, प्रदूषण और तनाव भी संभावित कारक हैं।
शुरुआती पहचान की चुनौती
ओवेरियन कैंसर के शुरुआती लक्षण—पेट फूलना, हल्का दर्द या असामान्य थकान—अक्सर नज़रअंदाज़ कर दिए जाते हैं। भारत में नियमित स्क्रीनिंग की कमी और जीन परीक्षण तक सीमित पहुँच इस समस्या को और गंभीर बनाती है।
आगे का रास्ता
विशेषज्ञ मानते हैं कि इस ट्रेंड को रोकने के लिए बहुआयामी कदम उठाने होंगे:
- महिलाओं में जागरूकता अभियान।
- उच्च जोखिम वाले परिवारों के लिए जेनेटिक टेस्टिंग।
- जीवनशैली में सुधार—संतुलित आहार, मोटापे पर नियंत्रण, प्रदूषण से बचाव।
- उच्च जोखिम समूहों की समय पर निगरानी।
- भारत-विशेष शोध और डेटा संग्रह।
ओवेरियन कैंसर अब केवल उम्रदराज़ महिलाओं की बीमारी नहीं रहा। भारत में बदलती जीवनशैली और आनुवंशिक जोखिम इसे युवतियों तक ला रहे हैं। डॉक्टरों की चेतावनी साफ़ है—सावधानी, जल्दी पहचान और समय पर हस्तक्षेप ही इस चुनौती का समाधान है।