भारत में नवरात्रि को देवी दुर्गा की उपासना और धार्मिक अनुष्ठानों से जोड़ा जाता है। लेकिन इसके पीछे स्वास्थ्य, ऋतु परिवर्तन और मानसिक संतुलन से जुड़ी वैज्ञानिक व्याख्याएँ भी मौजूद हैं। त्योहार केवल भक्ति नहीं, बल्कि शरीर और मन को पुनर्संतुलित करने की परंपरा है।
उपवास : शरीर को विश्राम और शुद्धि
नवरात्रि के दौरान लोग प्रायः सात्विक और हल्का भोजन करते हैं — फल, दूध, साबूदाना या कुट्टू जैसे खाद्य पदार्थ। यह पचने में आसान होता है और पाचन तंत्र को विश्राम देता है।
आधुनिक पोषण विज्ञान के नज़रिए से यह इंटरमिटेंट फास्टिंग जैसा है, जिससे मेटाबॉलिज़्म सुधरता है, ऊर्जा बनी रहती है और शरीर से विषैले तत्व बाहर निकलते हैं।
ऋतु परिवर्तन और जैविक संतुलन
नवरात्रि दो प्रमुख मौसमी बदलावों — वसंत और शरद — के दौरान मनाई जाती है। इन समयों पर शरीर को नए तापमान और वातावरण के साथ तालमेल बिठाना होता है।
आयुर्वेद मानता है कि यह समय शरीर के दोषों (वात, पित्त, कफ) को संतुलित करने के लिए आदर्श है। उपवास और अनुशासन इस अनुकूलन को सहज बनाते हैं।
मानसिक शांति और साधना
नवरात्रि केवल भोजन संबंधी अनुशासन नहीं, बल्कि मानसिक शुद्धि का भी अवसर है।
ध्यान, मंत्रजप और प्रार्थना से मन की एकाग्रता बढ़ती है और तनाव कम होता है। आधुनिक शोध भी पुष्टि करते हैं कि सामूहिक जप और ध्यान मस्तिष्क की तरंगों को संतुलित कर सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करते हैं।
चक्रों की शुद्धि और ऊर्जा का संतुलन
परंपरागत मान्यता के अनुसार नवरात्रि के नौ दिन शरीर के नौ ऊर्जा केंद्रों (चक्रों) की शुद्धि से जुड़े हैं। प्रत्येक दिन देवी के अलग स्वरूप की पूजा उस विशेष ऊर्जा को जाग्रत और संतुलित करने का प्रतीक माना जाता है।
इस साधना को केवल धार्मिक नहीं, बल्कि आत्मिक और स्वास्थ्यवर्धक प्रक्रिया भी समझा जाता है।
परंपरा और आधुनिकता का संगम
नवरात्रि सामूहिक उत्सव, भक्ति और सांस्कृतिक अभिव्यक्ति का पर्व है। लेकिन इसके पीछे छिपे वैज्ञानिक तर्क इसे और भी प्रासंगिक बनाते हैं।
आज के समय में यह त्योहार केवल देवी पूजा ही नहीं, बल्कि एक लाइफस्टाइल रीसेट है — जिसमें आहार, अनुशासन, मानसिक शांति और सामाजिक जुड़ाव सब शामिल हैं।