किडनी फेल्योर, लीवर डैमेज, गैस्ट्रिक इंफेक्शन और फूड पॉयजनिंग के केस तेज़ी से बढ़ रहे हैं। लेकिन सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि देश की खाद्य सुरक्षा से जुड़े सबसे बड़े संस्थान FSSAI की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल उठने लगे हैं।
X पर वायरल हो रहे एक पोस्ट ने बड़ा मुद्दा उठाया है —
◆ देश में कौन-सी लैब फेल हो रही है?
◆ कौन-सा ब्रांड जहरीला पाया गया?
◆ किस फूड प्रोडक्ट को बैन किया गया?
इन सवालों का जवाब जनता को आज भी नहीं मिल रहा।
पब्लिक हेल्थ क्राइसिस, लेकिन कोई ब्रांड-वाइज रिपोर्ट नहीं
डॉक्टरों और चिकित्सकों का कहना है कि पिछले एक वर्ष में
●किडनी और लीवर फेल्योर के केस बढ़े हैं,
●फूडबॉर्न इंफेक्शन तेजी से फैल रहे हैं,
●बाज़ार में नकली और मिलावटी प्रोडक्ट का खतरा दोगुना हो गया है।
फिर भी FSSAI की ओर से न तो
◆ ब्रांड-वाइज फेल लिस्ट जारी की जाती है,
◆ रोज़ाना की टेस्टिंग रिपोर्ट पब्लिक की जाती है,
◆ और न ही पब्लिक वॉर्निंग सिस्टम विकसित किया गया है।

नकली प्रोडक्ट्स का साम्राज्य, उपभोक्ता अंधेरे में
विशेषज्ञों के अनुसार भारत के बाजारों में इस समय खतरे की सबसे बड़ी वजह है:
◆नकली इंजन ऑयल
◆नकली सिरप और सप्लिमेंट
◆नकली नमक
◆नकली मसाले
◆घटिया मिलावटी खाद्य सामग्री
ये सभी बिना रोक-टोक बिक रहे हैं क्योंकि उपभोक्ता को कोई आधिकारिक और अपडेटेड चेतावनी उपलब्ध नहीं है।
सवाल साफ है — जनता की सेहत की जवाबदेही किसकी?
जब सोशल मीडिया लगातार खाद्य सुरक्षा की कमियों को उजागर कर रहा है, तब सरकारी एजेंसियों से ठोस कदम उठाने की मांग तेज हो गई है।
विशेषज्ञों का कहना है:
“अगर रोज़ टेस्टिंग रिपोर्ट और फेल ब्रांड्स की लिस्ट पब्लिश हो जाए, तो 50% मिलावट खुद ही बाजार से खत्म हो जाएगी।”
