उत्तर प्रदेश में आतंक फैलाने वाले खूंखार गैंगस्टर श्री प्रकाश शुक्ला के खात्मे के लिए 4 मई 1998 को गठित उत्तर प्रदेश स्पेशल टास्क फोर्स (UP STF) ने 24 साल पूरे कर लिए हैं। एसटीएफ बनने की कहानी कफी दिलचस्प है। गोरखपुर के रहने वाले श्री प्रकाश शुक्ला 1997 में तब सुर्खियों में आया था जब उसने लखनऊ में एक और माफिया डॉन वीरेंद्र प्रताप शाही की गोली मारकर हत्या कर दी थी। इसके बाद उत्तर प्रदेश में रेलवे ठेकों को लेकर हाई-प्रोफाइल किडनैपिंग, जबरन वसूली और हत्याओं की काफी घटनाएं हुईं।
सूबे में शुक्ला का आतंक तब और बढ़ गया जब उसने लखनऊ में एक पुलिस अधिकारी की गोली मारकर हत्या कर दी। इसके बाद तत्कालीन कल्याण सिंह सरकार ने शुक्ला और माफिया से निपटने के लिए एक समर्पित टास्क फोर्स गठित करने का फैसला किया। 50 पुलिस कर्मियों की एक टीम गठित की गई और इसे स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) नाम दिया गया।
एसटीएफ के गठन के पीछे मुख्य पांच उद्देश्य थे। पहला, संगठित माफिया गिरोहों के बारे में सारी जानकारी एकत्र करना और फिर इंटेलिजेंस पर आधारित जानकारियों से उन गिरोहों के खिलाफ ऐक्शन लेना। दूसरा, आईएसआई एजेंट्स, राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में लिप्त अपराधियों और बड़े अपराधियों पर शिकंजा कसना शामिल है।
तीसरा, जिला पुलिस के साथ समन्वय करके लिस्टेड गिरोहों के खिलाफ ऐक्शन लेना। चौथा, डकैतों के गिरोह और खासकर अंतरराज्यीय डकैतों के गिरोहों पर शिकंजा कसके उन पर प्रभावी कार्रवाई करना है। पांचवां और सबसे अहम श्रीप्रकाश शुक्ला पर शिकंजा कसना था।
मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की सुपारी ली
इस बीच शुक्ला का खौफ बढ़ता ही जा रहा था। उसने पटना में बिहार के मंत्री बृज बिहारी प्रसाद की गोली मारकर हत्या कर दी। खुफिया रिपोर्ट्स के अनुसार उसने तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को मारने की सुपारी ली थी। इस इनपुट ने दहशत पैदा कर दी और एसटीएफ ने शुक्ला को ट्रैक करने के लिए सभी उपलब्ध तकनीक का इस्तेमाल किया। जानकारी के अनुसार शुक्ला को नए-नए लॉन्च मोबाइल फोन का उपयोग करने का शौक था। ऐसे में एसटीएफ ने गैंगस्टर का पता लगाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस का इस्तेमाल किया और तत्कालीन एसटीएफ प्रमुख अरुण कुमार अपनी टीम के साथ दिल्ली पहुंचे, जहां शुक्ला छिपा था।
सबसे सफल एजेंसियों में से एक
गैंगस्टर आखिरकार 23 सितंबर, 1998 को एक भीषण मुठभेड़ में मार गिराया गया। शुक्ला की मृत्यु के बाद, एसटीएफ को भंग करने की बात चल रही थी, लेकिन राज्य सरकार ने टास्क फोर्स को और अधिक सशक्त बनाने का फैसला किया। तब से, एसटीएफ को संगठित अपराध और माफियाओ पर कार्रवाई के लिए जाना जाता है और अब यह राज्य की सबसे सफल एजेंसियों में से एक है।
अपराध नियंत्रण में सफल
यूपी में अपराधियों को पकड़ने और अपराधों को नियंत्रित करने में एसटीएफ काफी सफल साबित हुई। यह यूपी पुलिस का अभिन्न अंग रहा है। एसटीएफ का नेतृत्व एक अतिरिक्त महानिदेशक रैंक का अधिकारी करता है, जिसकी सहायता के लिए एक पुलिस महानिरीक्षक होता है। एसटीएफ टीमों के रूप में काम करता है।
राज्य के बाहर भी कार्रवाई करने की क्षमता
प्रत्येक टीम के नेतृत्व में एक अतिरिक्त एसपी या डिप्टी एसपी होता है। एसटीएफ द्वारा संचालित सभी कार्यों के प्रभारी एसएसपी होते हैं। इसकी टीमें संबंधित राज्य पुलिस की सहायता से राज्य के बाहर भी काम करती हैं। यूपी एसटीएफ अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए ह्यूमन इंटेलिजेंस, टेक्नलॉजी और परिष्कृत रणनीति पर व्यापक रूप से निर्भर करता है।