कहते हैं कि मुश्किल वक्त में शॉर्टकट काम नहीं आता है। बल्कि बेसिक तरीका ही कामयाबी दिलाता है। अब ये मुश्किल वक्त चाहे कभी सार्स वायरस या इबोला वायरस का रहा हो या अब कोरोना (Covid-19) महामारी का। इस कठिन समय में दुनिया में सबसे ताकतवर कहे जाने वाले देश अमेरिका ने भी कोरोना पर काबू पाने के लिए कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग (Contact Tracing) जैसे सबसे बेसिक तरीका को अपनाने का प्रयास किया। लेकिन सफल नहीं हो पाया और इसका भयावह नतीजा पूरी दुनिया ने देखा। दरअसल, कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग एक बेसिक तरीका है जिसके जरिए संक्रमित व्यक्ति और उसके संपर्क में आए लोगों का पता लगाकर सभी को आइसोलेशन (अलग) में रखा जाता है। जिससे किसी भी वायरस के प्रभाव को फैलने से रोका जा सके। लेकिन इस बेसिक तरीके को अमेरिका के तेज-तर्रार अधिकारी भी प्रभावी तरीके से लागू करने में सफल नहीं हो पाए। लेकिन उसी बेसिक तरीके को भारत के उत्तर प्रदेश जैसे बड़ी आबादी वाले राज्य ने इतने प्रभावी ढंग से ना सिर्फ लागू किया बल्कि उससे बड़ी सफलता भी प्राप्त की। जिसकी विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भी तारीफ की है। WHO के भारत में प्रतिनिधि डॉ रोडरिको (Dr. Roderico H. Ofrin) ने यूपी सरकार की रणनीति की सराहना करते हुए कहा कि ये देश के दूसरे राज्यों के लिए नजीर बन सकती है। इसे अपनाकर कोरोना पर काबू पाया जा सकता है।
यूपी में संक्रमित 93% लोगों का पता लगाने में कामयाबी जबकि अमेरिका में स्वास्थ्यकर्मियों ने हार मानी
WHO की रिपोर्ट में ये कहा गया है कि उत्तर प्रदेश सरकार Covid-19 मरीजों के संपर्क में आए 93 प्रतिशत लोगों का पता लगाकर संक्रमण को फैलने से रोक रही है। यानी अगर कोई व्यक्ति कोरोना पॉजिटिव मिला है तो उसके संपर्क में आए 10 में से 9 लोगों को ट्रेस करके उनका भी इलाज शुरू कर दिया गया। इस तरह से कोरोना के संक्रमण को फैलने से काफी हद तक रोका जा सका है। वहीं, Bharat Speaks की रिसर्च के मुताबिक, अमेरिका के कई बड़े राज्यों में कई महीने पहले ही Contact tracing लागू करने की पहल की गई और वहां के स्वास्थ्यकर्मियों को अलर्ट भी किया गया लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली।
अमेरिका के जाने-माने मीडिया ग्रुप The New york Times की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका के बड़ी आबादी वाले राज्य अरिजोना (Arizona) में कोरोना का संक्रमण काफी ज्यादा था लेकिन यहां पर कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग (Contact Tracing) पूरी तरह से असफल रहा। इसी तरह अमेरिका के राज्य ऑस्टिन (Austin) और टेक्सास (Texas) में भी देखने को मिला। फ्लोरिडा और न्यूयॉर्क सिटी में भी ऐसी ही विफलता मिली। इस असफलता को लेकर वहां के स्वास्थ्यकर्मियों ने कहा कि लोगों से जानकारी जुटाना इतना आसान नहीं है। और उन्हें ऐसी ट्रेनिंग भी नहीं मिली है कि वे लोगों से संक्रमण को लेकर ज्यादा डिटेल ले सकें।
यूपी जैसे बड़े राज्य में भी थी बड़ी चुनौती, लेकिन सीएम की मॉनिटरिंग से मिली कामयाबी
अगर अमेरिका के सबसे बड़े राज्य कैलिफोर्निया से भारत के राज्य उत्तर प्रदेश की तुलना करें तो कैलिफोर्निया में करीब 4 करोड़ की आबादी है वहीं उत्तर प्रदेश में करीब 20 करोड़ आबादी है। यानी यूपी में कैलिफोर्निया की तुलना में करीब 5 गुना ज्यादा आबादी है। इसके बाद भी कैलिफोर्निया में कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग सिस्टम विफल रहा। लेकिन यूपी में इसके लिए खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कमान संभाली और हर जिला स्तर पर मॉनिटरिंग शुरू की। रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर प्रदेश सरकार ने डब्ल्यूएचओ के साथ मिलकर Covid-19 को फैलने से रोकने के लिए कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग प्रक्रिया को अपनाया। इसके तहत यूपी के 75 जिलों में 800 चिकित्सा अधिकारियों की तैनाती की गई। इन लोगों ने महज 1 से 14 अगस्त यानी 13 दिनों के भीतर ही 58 हजार लोगों की जांच की और 24 घंटे के भीतर रिपोर्ट निकालकर उनके संपर्क में आए लोगों को ट्रेस किया।
70 हजार से अधिक स्वास्थ्यकर्मियों ने फ्रंट लाइन पर किया काम
सरकार के राज्य निगरानी अधिकारी डॉ. विकासेंदु अग्रवाल ने बताया कि कोरोना संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए उत्तर प्रदेश में 70 हजार से अधिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता फ्रंट लाइन (Front Line) पर काम कर रहे हैं। ये फ्रंट लाइन कार्यकर्ता कोरोना से गंभीर रूप से पीड़ित व्यक्ति तक पहुंच रहे हैं और उनके इलाज में जुटे हैं। इस कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग सिस्टम को बेहतर और प्रभावी बनाने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन से ट्रेनिंग ली हुई 800 चिकित्सा अधिकारियों की प्रशिक्षित टीम ने काम किया। इस दौरान टीम ने लोगों को जागरूक करके और उनसे लगातार संपर्क बनाए रखा। जिसकी वजह से संक्रमित लोगों में भरोसा भी बढ़ा और प्रभावी ढंग से कोरोना पर कंट्रोल किया जा सका।
क्या है कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग सिस्टम, जिसे दुनिया अपनाएगी
कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग (Contact Tracing) सिस्टम किसी भी वायरस के संक्रमण को रोकने और उसका पता लगाने के लिए एक बेहद ही बेसिक तरीका है। इबोला, सार्स जैसे वायरस जब कहर बनकर आए थे तब कई देशों में इसी तरीके से प्रभावी काबू पाया गया था। दरअसल, इसमें संक्रमित व्यक्ति के साथ उसके संपर्क में आए लोगों का भी पता लगाकर उनपर नजर रखी जाती है। Covid-19 वायरस के लिए कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग (Contact Tracing) के लिए खास गाइडलाइंस बनाई गई है। इसके तहत कोरोना संक्रमित व्यक्ति से 6 फीट की दूरी तक अगर कोई व्यक्ति 15 मिनट या इससे ज्यादा देर तक मौजूद रहा है तो उसका पता लगाया जाएगा। इस दौरान संपर्क में आए सभी लोगों की जानकारी जुटाकर उन्हें भी आइसोलेशन में रखना जरूरी है ताकी संक्रमण को फैलने से रोका जा सके। लेकिन अमेरिका जैसे देशों में संक्रमित लोगों से बेहतर कम्युनिकेशन नहीं कर पाने की वजह से सफलता नहीं मिली। इसके बाद मोबाइल ऐप का सहारा लिया गया लेकिन प्राइवेसी खत्म होने की वजह से इसे भी सफलता नहीं मिली। लेकिन उत्तर प्रदेश में स्वास्थ्यकर्मियों की टीम ने लोगों से बेहतर और फ्रेंडली माहौल में संक्रमित व्यक्ति से बात कर उसके संपर्क में आए 93 प्रतिशत लोगों का पता लगाया और उन्हें आइसोलेशन में भी रखा। जिसे पूरे विश्व में बड़ी कामयाबी के रूप में देखा जा रहा है। इसलिए WHO ने भी उत्तर प्रदेश से सीख लेकर उसी तरीके से दूसरे राज्यों में भी इसी पैटर्न पर कोरोना पर काबू करने की अनुशंसा की है। माना जा रहा है कि जिस बेसिक कम्युनिकेशन तरीके को अपनाकर कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग को सफल बनाया गया अब आने वाले समय में दुनिया के कई देश भी इसी तरीके को आजमा सकते हैं।