आजकल “डिटॉक्स” का मतलब अकसर हरे जूस, हर्बल चाय या महंगे क्लीनज़ पैकेज से लगाया जाता है। लेकिन भारत की प्राचीन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद इसका केंद्र कहीं और बताती है—पैरों में।
दूसरा दिल, पैरों में धड़कता
आयुर्वेद जिस मांसपेशी की ओर इशारा करता है, वह है सोलियस—पिंडली की एक चौड़ी मांसपेशी। आधुनिक विज्ञान इसे “सेकंड हार्ट” कहता है क्योंकि यह खून को पैरों से वापस हृदय तक पंप करती है। आयुर्वेद इसके भीतर और गहराई देखता है—इसे व्यान वात का मुख्य मार्ग मानता है, जो पूरे शरीर में रक्त और प्राण ऊर्जा का संचार करता है।
आंत नहीं, पैरों से शुरू होता है डिटॉक्स
पश्चिमी दुनिया में डिटॉक्स का संबंध अक्सर पाचन तंत्र से जोड़ा जाता है। आयुर्वेद कहता है कि असली शुद्धिकरण नीचे से ऊपर की ओर होता है। यदि लंबे समय तक बैठे रहना, अस्वस्थ आदतें या तनाव के कारण रक्त प्रवाह धीमा हो जाए, तो शरीर में विषाक्त पदार्थ जमा होने लगते हैं और ऊर्जा सुस्त पड़ जाती है।
उपचार: सरल लेकिन गहरे
आयुर्वेद का सुझाव सीधा है—पैरों को चलाइए। चलना, योगासन, या हल्की टखनों की एक्सरसाइज़ सोलियस को सक्रिय करती है। प्राकृतिक सतह पर नंगे पैर चलना ग्राउंडिंग कहलाता है, जो शरीर की ऊर्जा को धरती से जोड़ता है। पैरों की मालिश, औषधीय जड़ी-बूटियाँ और प्राणायाम इसके पूरक हैं।
पुरानी सीख, आधुनिक संदर्भ
आज जब घंटों बैठकर काम करना जीवन का हिस्सा बन चुका है, तो “दूसरे दिल” की यह अवधारणा नई प्रासंगिकता पा रही है। आयुर्वेद याद दिलाता है कि डिटॉक्स किसी बोतल से नहीं, बल्कि सचेत कदमों से भी संभव है।