भारत में पेट्रोल-डीज़ल की बढ़ती कीमतें लंबे समय से आम आदमी की जेब पर बोझ डाल रही हैं। लेकिन असली तस्वीर और भी चौंकाने वाली है। तेल कंपनियों से ज़्यादा मुनाफा सरकारें कमा रही हैं। यही कारण है कि अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमतें घटने के बावजूद भारत में पेट्रोल-डीज़ल की दरें शायद ही कम होती हैं।
आर्थिक विशेषज्ञ सुजय के मुताबिक, “तेल कंपनियां उतना नहीं कमा रहीं, जितना केंद्र और राज्य सरकारें टैक्स के नाम पर कमा रही हैं।” आंकड़े बताते हैं कि केंद्र सरकार तेल क्षेत्र से होने वाली आय का लगभग 60% टैक्स से हासिल करती है। वहीं, राज्य सरकारों की हालत और भी ‘सोने की खान’ जैसी है, क्योंकि वे अपनी आय का करीब 90% हिस्सा टैक्स से प्राप्त करती हैं।
यानि जब भी आप पेट्रोल पंप पर गाड़ी में ईंधन भरवाते हैं, तो असल में सिर्फ़ तेल नहीं खरीद रहे होते, बल्कि भारत की सबसे बड़ी “पैसा कमाने वाली मशीन” को चला रहे होते हैं।
आम आदमी की जेब पर सीधा असर
एक लीटर पेट्रोल की कीमत का बड़ा हिस्सा टैक्स और सेस के रूप में चला जाता है। उदाहरण के तौर पर, अगर पेट्रोल का बेस प्राइस Rs40-45 प्रति लीटर है, तो उपभोक्ता को Rs100 तक चुकाना पड़ता है। इसमें से ज़्यादातर पैसा सरकार के खजाने में जाता है। यही वजह है कि भारतीय उपभोक्ताओं पर ईंधन कर का बोझ दुनिया के सबसे ऊंचे स्तरों में गिना जाता है।
क्यों नहीं घटती कीमतें?
जब भी अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की दरें गिरती हैं, लोग उम्मीद करते हैं कि पेट्रोल-डीज़ल सस्ता होगा। लेकिन टैक्स स्ट्रक्चर इतना भारी है कि इसका फ़ायदा सीधे आम जनता तक नहीं पहुँच पाता। सरकारें इनसे होने वाली आय का इस्तेमाल बजट संतुलन और विकास योजनाओं में करती हैं, लेकिन इसका सीधा असर उपभोक्ताओं की जेब पर पड़ता है।
जनता का सवाल
देशभर में यह सवाल अब और तेज़ हो रहा है कि जब तेल कंपनियां उतना मुनाफा नहीं कमा रहीं, तो पेट्रोल-डीज़ल इतना महंगा क्यों? असल वजह सरकारों की टैक्स पॉलिसी ही है।
इसलिए अगली बार जब आप पेट्रोल पंप पर ₹100 का पेट्रोल भरवाएँगे, तो याद रखिए—उसमें से आधा से ज़्यादा हिस्सा सीधा सरकार की तिजोरी में जा रहा है।