पूरे देश में गणेश चतुर्थी की धूम है। घर-घर और पंडालों में बप्पा का आगमन हो रहा है। रंग-बिरंगे जुलूसों और सामूहिक आयोजनों के बीच सबसे बड़ा सवाल यही रहता है कि सही पूजन सामग्री क्या होनी चाहिए।
मोदक से आगे भी है परंपरा
गणेशजी के प्रिय मोदक और मोतीचूर के लड्डू तो हर पूजा में रखे ही जाते हैं। किंतु पुरोहितों और ज्योतिषाचार्यों का कहना है कि इसके अलावा पाँच विशेष वस्तुएँ हैं जो पूजन को पूर्ण बनाती हैं:
- दूर्वा घास — जिसे गणेशजी का सबसे प्रिय अर्पण माना जाता है।
- जपा (गुड़हल) के फूल — शुद्धता और भक्ति का प्रतीक।
- नारियल — पवित्रता और समृद्धि का द्योतक।
- अक्षत (संपूर्ण चावल के दाने) — अखंड मंगल का प्रतीक।
- गुड़ — सादगी और मिठास का द्योतक।
शुभ मुहूर्त
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार इस वर्ष गणेश चतुर्थी पूजन का सबसे उत्तम समय सुबह 11:05 से दोपहर 1:40 बजे तक रहेगा। इस समय किए गए पूजन को विशेष फलदायी माना गया है।
पूजन की अवधि भी विविध होती है — डेढ़ दिन से लेकर दस दिन तक। अंतिम दिन गणेश विसर्जन होता है, जो इस वर्ष 6 सितंबर को संपन्न होगा। उस दिन बप्पा को जल में विदा किया जाएगा, ढोल-नगाड़ों और भक्तिमय नारों के बीच।
आस्था और एकता का पर्व
कभी महाराष्ट्र तक सीमित यह पर्व आज पूरे भारत का उत्सव बन चुका है। मुंबई और पुणे जैसे शहरों में विशाल प्रतिमाएँ स्थापित की जाती हैं, वहीं परिवार अपने घरों में सरल पूजा करते हैं।
इन पाँच साधारण-सी वस्तुओं — दूर्वा, फूल, नारियल, अक्षत और गुड़ — से यह संदेश भी मिलता है कि भक्ति में आडंबर नहीं, बल्कि सादगी और आस्था ही सर्वोपरि है।