नई दिल्ली | 27 अक्तूबर 2025
भारत के चुनाव आयोग (ECI) ने सोमवार को मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) के दूसरे चरण की घोषणा की। यह चरण 29 अक्तूबर से शुरू होकर फरवरी 2026 तक चलेगा और इसमें 12 राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेश शामिल होंगे — जिनमें केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और पुडुचेरी जैसे क्षेत्र भी हैं, जहाँ अगले वर्ष विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं।
मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने कहा कि यह अभ्यास देशभर में मतदाता सूची की प्रामाणिकता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि घर-घर जाकर मतदाता सूची के फॉर्म का वितरण और संग्रहण 4 नवंबर से 4 दिसंबर 2025 तक होगा, जबकि 9 दिसंबर को मसौदा सूची प्रकाशित की जाएगी। दावे और आपत्तियाँ 8 जनवरी 2026 तक स्वीकार की जाएंगी, और सुनवाई व सत्यापन की प्रक्रिया 31 जनवरी तक पूरी की जाएगी। अंतिम मतदाता सूची 7 फरवरी 2026 को प्रकाशित की जाएगी।
अगले चुनावी चक्र से पहले एक बड़ी कवायद
SIR का दूसरा चरण ऐसे समय में शुरू हो रहा है जब चार प्रमुख राज्य — केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और पुडुचेरी — 2026 में विधानसभा चुनाव के लिए तैयारी कर रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यह पुनरीक्षण राजनीतिक रूप से भी अहम होगा, क्योंकि यह चुनावी गणना और मतदाता व्यवहार के अद्यतन डेटा उपलब्ध कराएगा।
हालाँकि, असम को इस प्रक्रिया से बाहर रखा गया है। इस पर मुख्य चुनाव आयुक्त ने स्पष्ट किया कि, “असम में नागरिकता अधिनियम के विशेष प्रावधान लागू हैं। सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में नागरिकता सत्यापन की प्रक्रिया जारी है, इसलिए फिलहाल SIR का आदेश उस पर लागू नहीं होगा।”
कुमार ने यह भी बताया कि यह स्वतंत्रता के बाद से नौवाँ राष्ट्रीय पुनरीक्षण है। पिछली बार ऐसा व्यापक अभ्यास 2002–2004 में किया गया था।
संवैधानिक दायित्व और राजनीतिक बहस
पश्चिम बंगाल की सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस द्वारा इस अभ्यास पर जताई गई शंका के सवाल पर कुमार ने कहा, “राज्य सरकार और चुनाव आयोग के बीच कोई टकराव नहीं है। आयोग संविधान के अनुच्छेद 326 के तहत अपना संवैधानिक दायित्व निभा रहा है, और राज्य सरकारें भी अपनी भूमिका निभाएंगी।”
केरल में नवंबर-दिसंबर में प्रस्तावित स्थानीय निकाय चुनावों को लेकर पूछा गया कि क्या आयोग के पास पर्याप्त कर्मचारी होंगे, इस पर उन्होंने कहा, “संविधान के अनुसार, राज्य सरकारों को आयोग को आवश्यक कार्मिक उपलब्ध कराना अनिवार्य है।”
राजनीतिक स्तर पर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने SIR को “एनडीए की सियासी भूल” बताया है। वहीं, कांग्रेस ने सवाल उठाया कि यह अभ्यास ऐसे समय में क्यों शुरू किया जा रहा है जब “चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर लगातार प्रश्नचिह्न लग रहे हैं।”
तकनीकी सुधार और नई प्रक्रिया
बिहार में हालिया पुनरीक्षण से मिली सीख को ध्यान में रखते हुए, आयोग ने सभी मुख्य निर्वाचन अधिकारियों (CEOs) को नई हिदायतें जारी की हैं। निर्देशों के अनुसार, गणना चरण के दौरान किसी भी मतदाता से दस्तावेज़ नहीं मांगे जाएंगे। यदि किसी मतदाता का फॉर्म वापस नहीं आता, तो ब्लॉक लेवल ऑफिसर (BLO) पड़ोसियों से पूछताछ कर यह नोट करेंगे कि व्यक्ति अनुपस्थित, मृत, स्थानांतरित या डुप्लीकेट श्रेणी में तो नहीं आता।
इसके अलावा, BLO अब नए मतदाताओं के नामांकन के लिए कम-से-कम 30 फॉर्म-6 और घोषणा पत्र (Annexure IV) साथ लेकर जाएंगे, ताकि इच्छुक व्यक्ति तुरंत नामांकन कर सकें।
जिन मतदाताओं को पिछले पुनरीक्षण से लिंक नहीं किया जा सका है, उनके लिए निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी (ERO) मसौदा सूची जारी होने के बाद नोटिस जारी कर पात्रता सुनिश्चित करेंगे।
प्रणाली सुधार बनाम सियासी विमर्श
चुनाव आयोग ने अब तक दो बैठकों में सभी राज्यों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों के साथ इस प्रक्रिया की रोडमैप और निगरानी रणनीति पर चर्चा की है सूत्रों का कहना है कि आयोग का उद्देश्य इस बार “डेटा इंटीग्रेशन और सटीकता” पर विशेष ध्यान देना है — जिससे डुप्लीकेट वोटर और भूतिया नाम जैसी पुरानी शिकायतें दूर की जा सकें।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह कवायद, भले ही तकनीकी दृष्टि से आवश्यक हो, लेकिन चुनावी वर्ष से पहले इसकी टाइमिंग को लेकर विपक्षी दलों की असहजता समझी जा सकती है। फिर भी, प्रशासनिक दृष्टि से यह कदम भारत की चुनावी पारदर्शिता और मतदाता विश्वसनीयता को मज़बूती देने वाला साबित हो सकता है।
निष्कर्ष
SIR 2025-26 केवल एक औपचारिक पुनरीक्षण नहीं, बल्कि भारत के चुनावी बुनियादी ढांचे के पुनर्गठन का हिस्सा है। जहाँ राजनीतिक दल इसे अपने-अपने चश्मे से देख रहे हैं, वहीं चुनाव आयोग का दावा है कि इस प्रक्रिया के ज़रिए “एक व्यक्ति, एक वोट” की अवधारणा को तकनीकी स्तर पर और अधिक सुदृढ़ बनाया जाएगा।
