भारतीय कला और मूर्तिकला जगत के लिए यह एक अपूरणीय क्षति है। स्टैच्यू ऑफ यूनिटी जैसे विश्वविख्यात स्मारक को आकार देने वाले महान मूर्तिकार राम वनजी सुतार का 100 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्होंने 17 दिसंबर 2025 की मध्यरात्रि नोएडा के सेक्टर-19 स्थित अपने निवास पर अंतिम सांस ली। उनके निधन के साथ ही भारतीय मूर्तिकला के एक स्वर्णिम युग का पटाक्षेप हो गया।
परिवार के अनुसार, राम सुतार बीते सितंबर से अस्वस्थ चल रहे थे। उनके बेटे अनिल सुतार ने बताया कि अंतिम समय में ऑक्सीजन स्तर और रक्तचाप तेजी से गिर गया था। रात करीब 1:30 बजे उन्होंने शांतिपूर्वक दुनिया को अलविदा कहा। उनका अंतिम संस्कार नोएडा सेक्टर-94 स्थित अंतिम निवास पर किया जाएगा।
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गांव से विश्व पटल तक का सफर
राम वनजी सुतार का जन्म 19 फरवरी 1925 को महाराष्ट्र के धुले जिले के गोंडूर गांव में हुआ था। सीमित संसाधनों में पले-बढ़े सुतार ने अपनी प्रतिभा और कठोर परिश्रम से इतिहास रच दिया। उन्होंने मुंबई के प्रतिष्ठित जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट्स से शिक्षा प्राप्त की और यहीं से उनकी रचनात्मक यात्रा ने उड़ान भरी।
सात दशकों से अधिक के अपने करियर में उन्होंने न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया में भारतीय कला की पहचान बनाई।
स्टैच्यू ऑफ यूनिटी: इतिहास की सबसे ऊंची पहचान
राम सुतार की सबसे ऐतिहासिक कृति सरदार वल्लभभाई पटेल की 182 मीटर ऊंची स्टैच्यू ऑफ यूनिटी है, जो आज भी विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा है। यह केवल एक मूर्ति नहीं, बल्कि भारत की एकता, आत्मविश्वास और शिल्प कौशल का प्रतीक है।
इसके अलावा संसद भवन के बाहर स्थापित ध्यानमग्न गांधी जी की कांस्य प्रतिमा, गांधी सागर बांध पर विशाल मूर्ति, डॉ. भीमराव अंबेडकर, छत्रपति शिवाजी महाराज, महाराजा सुहेलदेव सहित सैकड़ों महापुरुषों की प्रतिमाएं उनकी अमर धरोहर हैं।

सम्मान, सादगी और समर्पण
राम सुतार को पद्म श्री (1999), पद्म भूषण (2016), टैगोर सांस्कृतिक सद्भाव पुरस्कार, और हाल ही में महाराष्ट्र भूषण (2025) से सम्मानित किया गया था। खास बात यह रही कि महाराष्ट्र सरकार ने उन्हें उनके घर जाकर सम्मानित किया।
100 वर्ष की आयु में भी वे सक्रिय थे और कई बड़ी परियोजनाओं पर काम कर रहे थे। उनकी सादगी, अनुशासन और कला के प्रति समर्पण नई पीढ़ी के कलाकारों के लिए प्रेरणा बना रहेगा।
राम वनजी सुतार भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी कृतियां आने वाली सदियों तक भारत की पहचान को जीवित रखेंगी।
