उत्तर प्रदेश की धरती हमेशा से शिक्षा और ज्ञान की भूमि मानी जाती रही है। इसी गौरव को और गहराई देने वाला नाम है इलाहाबाद विश्वविद्यालय, जिसकी स्थापना 23 सितंबर 1887 को हुई थी। अक्सर ‘पूर्व का ऑक्सफोर्ड’ कहे जाने वाले इस विश्वविद्यालय ने भारत के शिक्षा जगत को दिशा देने के साथ-साथ देश के प्रशासनिक ढांचे में भी अद्वितीय योगदान दिया है।
इतिहास और गौरव
इलाहाबाद विश्वविद्यालय भारत का चौथा सबसे पुराना विश्वविद्यालय है, जो कलकत्ता, बॉम्बे और मद्रास विश्वविद्यालयों के बाद अस्तित्व में आया। इसकी पहली प्रवेश परीक्षा मार्च 1889 में आयोजित हुई थी। अपनी कठोर शैक्षिक मानकों, उत्कृष्ट फैकल्टी और अनुशासन के कारण यह संस्था न केवल अकादमिक उत्कृष्टता बल्कि नेतृत्व और नैतिक मूल्यों के लिए भी जानी जाती है।
प्रसिद्ध पूर्व छात्र – IAS, IPS और राष्ट्रपति तक
इस विश्वविद्यालय ने ऐसे नेताओं को जन्म दिया जिन्होंने भारत के इतिहास को दिशा दी। पूर्व राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा और डॉ. जाकिर हुसैन इसी संस्था के गौरवशाली पूर्व छात्र रहे हैं। इसके अलावा, हजारों की संख्या में IAS, IPS और प्रशासनिक सेवाओं के अधिकारी यहां से निकले हैं, जिसकी वजह से इसे अक्सर “IAS-IPS बनाने की फैक्ट्री” भी कहा जाता है।
क्यों है खास
इलाहाबाद विश्वविद्यालय की खासियत यह है कि यहां शिक्षा केवल डिग्री तक सीमित नहीं रहती। यह छात्रों में नेतृत्व, चरित्र निर्माण, और समाज सेवा की भावना को भी विकसित करता है। यहां की कठोर प्रवेश प्रक्रिया और अनुशासित वातावरण छात्रों को हर क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए तैयार करता है।
नया दौर, पुरानी विरासत
समय बदलने के बावजूद इलाहाबाद विश्वविद्यालय का आकर्षण कम नहीं हुआ है। देशभर के छात्र यहां शोध, नवाचार और उच्च शिक्षा के लिए आते हैं। 137 साल पुरानी यह संस्था भारतीय शिक्षा जगत का स्तंभ है और आने वाली पीढ़ियों को ज्ञान और मूल्यों का मार्ग दिखा रही है।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय सिर्फ एक शिक्षण संस्थान नहीं, बल्कि भारत के बौद्धिक और प्रशासनिक ढांचे की धड़कन है। इसकी गौरवशाली परंपरा और ऐतिहासिक योगदान आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देते रहेंगे।