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Home»Health»प्राचीन ऊर्जा विज्ञान की पुनर्परिभाषा: भारतीय योग में चक्रों और पंचतत्त्वों की समरसता
Health

प्राचीन ऊर्जा विज्ञान की पुनर्परिभाषा: भारतीय योग में चक्रों और पंचतत्त्वों की समरसता

BharatSpeaksBy BharatSpeaksJuly 30, 2025No Comments3 Mins Read
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Ancient science of chakras
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मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान (MDNIY), आयुष मंत्रालय के अधीन कार्यरत एक प्रमुख संस्था, ने हाल ही में एक शैक्षिक पोस्टर जारी किया है जो योग विज्ञान में वर्णित सात चक्रों और उनसे संबंधित पंचतत्त्वों की वैज्ञानिक संरचना को दर्शाता है। यह चार्ट स्वामी मुक्तिबोधानंद की प्रसिद्ध पुस्तक स्वर योग पर आधारित है और योग को केवल आध्यात्मिक अनुशासन नहीं, बल्कि ऊर्जा और चेतना का समग्र विज्ञान के रूप में प्रस्तुत करता है।

इस पहल का उद्देश्य भारतीय ज्ञान परंपरा को समकालीन संदर्भों में प्रस्तुत करना है — जहाँ चक्र केवल शरीर के भीतर ऊर्जा केंद्र नहीं हैं, बल्कि वे जीवन की चेतना, स्वास्थ्य और आत्म-साक्षात्कार के प्रवेश द्वार हैं।

चक्र क्या हैं?

“चक्र” शब्द संस्कृत से आया है, जिसका अर्थ है “घूर्णनशील ऊर्जा केंद्र”। योगशास्त्र में, मानव शरीर में सात प्रमुख चक्रों की मान्यता है, जो रीढ़ की हड्डी के मूल से लेकर मस्तिष्क के शीर्ष तक स्थित हैं। प्रत्येक चक्र एक विशिष्ट तत्त्व (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) से जुड़ा होता है और शरीर के एक भाग, एक ग्रंथि, तथा मानसिक अवस्था को नियंत्रित करता है।

यह प्रणाली न केवल शारीरिक स्वास्थ्य, बल्कि मानसिक संतुलन और आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी महत्वपूर्ण मानी जाती है।

सात चक्र: ऊर्जा, तत्त्व और चेतना के केंद्र

  1. मूलाधार चक्र (पृथ्वी तत्व)
    स्थान: रीढ़ की हड्डी का आधार
    भूमिका: सुरक्षा, स्थायित्व, जीवन की नींव
    असंतुलन: भय, असुरक्षा, अस्तित्व संकट
  2. स्वाधिष्ठान चक्र (जल तत्व)
    स्थान: नाभि के नीचे
    भूमिका: रचनात्मकता, भावनाएं, यौन ऊर्जा
    असंतुलन: अपराधबोध, भावनात्मक जड़ता
  3. मणिपुर चक्र (अग्नि तत्व)
    स्थान: नाभि क्षेत्र
    भूमिका: आत्मबल, पाचन, इच्छाशक्ति
    असंतुलन: क्रोध, भ्रम, आत्म-संदेह
  4. अनाहत चक्र (वायु तत्व)
    स्थान: हृदय केंद्र
    भूमिका: प्रेम, करुणा, संतुलन
    असंतुलन: दुख, द्वेष, संबंधों में खटास
  5. विशुद्धि चक्र (आकाश तत्व)
    स्थान: गला
    भूमिका: अभिव्यक्ति, संवाद, सत्य
    असंतुलन: आत्म-अभिव्यक्ति में रुकावट, झिझक
  6. आज्ञा चक्र (चेतना तत्व)
    स्थान: दोनों भौंहों के बीच
    भूमिका: अंतर्ज्ञान, विचार स्पष्टता
    असंतुलन: भ्रम, मानसिक थकावट
  7. सहस्रार चक्र (अधिसचेतना)
    स्थान: सिर का शीर्ष
    भूमिका: ब्रह्मज्ञान, एकत्व, आत्मसाक्षात्कार
    असंतुलन: आध्यात्मिक शून्यता, उद्देश्यहीनता

योग का समकालीन वैज्ञानिक दृष्टिकोण

योग विशेषज्ञों का मानना है कि चक्र केवल आध्यात्मिक प्रतीक नहीं हैं, बल्कि वे तंत्रिका तंत्र, अंतःस्रावी ग्रंथियों और मनोवैज्ञानिक अवस्थाओं से प्रत्यक्ष रूप से जुड़े होते हैं। प्राणायाम, ध्यान, और आसन के अभ्यास से इन चक्रों को संतुलित कर शरीर और मन में गहरे स्तर पर उपचार संभव है।

आधुनिक विज्ञान अब psycho-neuro-immunology और biofield research के माध्यम से यह समझने लगा है कि शरीर में ऊर्जा प्रवाह का सीधा संबंध मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य से होता है। ऐसे में चक्रों का संतुलन केवल योगियों के लिए नहीं, बल्कि प्रत्येक व्यक्ति के लिए प्रासंगिक हो गया है।

चक्र संतुलन: आंतरिक परिवर्तन की कुंजी

आज के युग में, जहाँ तनाव, अवसाद और अनिश्चितता जीवन का सामान्य हिस्सा बन चुके हैं, यह प्राचीन विज्ञान एक नए दृष्टिकोण के रूप में उभर रहा है। योग के माध्यम से व्यक्ति बाहरी उपचार के बजाय भीतर की शक्ति को जाग्रत कर सकता है।

MDNIY द्वारा जारी किया गया यह चक्र-तत्त्व चार्ट भारत की योग विरासत को आधुनिक स्वास्थ्य और चेतना से जोड़ने का एक सार्थक प्रयास है — एक ऐसा प्रयास जो वैश्विक स्वास्थ्य विमर्श में भारत की भूमिका को और सशक्त करता है।

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