हज़ारों वर्षों पुरानी भारतीय चिकित्सा प्रणाली आयुर्वेद अब केवल परंपरा तक सीमित नहीं रही। आधुनिक दौर में यह वैश्विक स्वास्थ्य और वेलनेस जगत में नई वैज्ञानिक साख और तेज़ी से बढ़ती लोकप्रियता के साथ उभर रही है।
कभी सिर्फ ग्रामीण भारत या पारंपरिक परिवारों में सीमित रहा यह चिकित्सा तंत्र अब लंदन, न्यूयॉर्क, बर्लिन जैसे शहरों में नए रूप में अपनाया जा रहा है। लोग अश्वगंधा, शतावरी, ब्राह्मी जैसे औषधीय पौधों को अपनी दिनचर्या में शामिल कर रहे हैं, वहीं अभ्यंग (तेल मालिश), दिनचर्या, और सात्विक आहार जैसे शारीरिक व मानसिक संतुलन को बनाए रखने वाले उपाय अब योग की तरह लोकप्रिय हो रहे हैं।
“अब लोग इलाज से ज्यादा रोकथाम और जीवनशैली संतुलन पर ध्यान दे रहे हैं,” लंदन की वेलनेस विशेषज्ञ डॉ. रितु शर्मा कहती हैं। “योग ने जिस रास्ते की शुरुआत की थी, अब आयुर्वेद उसी पर आगे बढ़ रहा है।”
वैज्ञानिक मान्यता और वैश्विक मांग
पश्चिमी चिकित्सा प्रणालियों की सीमाओं और एलोपैथिक दवाओं के साइड इफेक्ट से परेशान कई लोग अब प्राकृतिक और शुद्ध विकल्प की तलाश में आयुर्वेद की ओर रुख कर रहे हैं। खासतौर पर युवा महिलाएं थायरॉइड, पीसीओडी और तनाव जैसी समस्याओं के समाधान के लिए आयुर्वेदिक उपचार को प्राथमिकता दे रही हैं।
वैज्ञानिक शोधों में भी कई आयुर्वेदिक औषधियों को सुरक्षित और प्रभावी पाया गया है। इससे न केवल उत्पादों की लोकप्रियता बढ़ी है, बल्कि संस्थागत निवेश और नीति समर्थन भी मिला है।
$140 बिलियन की ओर बढ़ता वैश्विक बाजार
2024 में वैश्विक आयुर्वेदिक उत्पाद बाजार की कीमत $15–16 अरब डॉलर आंकी गई थी। यह 2033 तक बढ़कर $140 अरब डॉलर से अधिक हो सकती है। यूरोप, अमेरिका और एशिया-प्रशांत क्षेत्र में इसकी मांग तेजी से बढ़ रही है।
भारत ने भी WHO के ग्लोबल सेंटर फॉर ट्रेडिशनल मेडिसिन की स्थापना के लिए ₹250 करोड़ का निवेश किया है, जो आयुर्वेद को एक वैश्विक स्वास्थ्य प्रणाली के रूप में स्थापित करने की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है।
चुनौतियां भी कम नहीं
हालांकि लोकप्रियता के साथ चुनौतियां भी बढ़ी हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि वैश्विक बाज़ार में मानकीकरण (standardisation) की कमी, फॉर्मूला की विविधता, और गुणवत्ता नियंत्रण जैसी समस्याएं हैं। कुछ आयुर्वेदिक उत्पादों में भारी धातुओं की उपस्थिति और अनियंत्रित खुराक के मामले भी चिंता का विषय बने हुए हैं।
“आयुर्वेद को ग्लोबल बनाना है तो इसकी जड़ों को भी समझना होगा,” बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एस.के. मिश्रा कहते हैं। “केवल उत्पाद नहीं, इसकी दर्शनशास्त्र और नैतिकता भी बरकरार रखनी होगी।”
जीवन का विज्ञान, सिर्फ इलाज नहीं
आयुर्वेद एक चिकित्सा पद्धति भर नहीं, बल्कि जीवन जीने का विज्ञान है। यह व्यक्ति के शरीर, मन और आत्मा को एकीकृत कर संपूर्ण स्वास्थ्य की ओर ले जाने का मार्ग दिखाता है।
दुनिया भर में तनाव, मानसिक थकान और जीवनशैली रोगों के इस दौर में आयुर्वेद की यह वापसी केवल एक ट्रेंड नहीं—बल्कि संतुलन और सतत् स्वास्थ्य की वापसी है।