भारत की हेल्थकेयर एआई स्टार्टअप्स तेजी से बढ़ते बाज़ार में अपार संभावनाएं रखती हैं, लेकिन उनकी राह में सबसे बड़ी बाधा है — गुणवत्तापूर्ण मेडिकल डेटा की अनुपलब्धता। विशेषज्ञों का कहना है कि अधिकांश अस्पतालों के रिकॉर्ड अधूरे, असंगठित या पुराने सिस्टम में बंद हैं, जिन्हें एआई मॉडल के प्रशिक्षण में इस्तेमाल करना कठिन है।
डेटा की कमी और गुणवत्ता का संकट
कई अस्पताल केवल भर्ती और डिस्चार्ज से जुड़ी बुनियादी जानकारी दर्ज करते हैं। इलेक्ट्रॉनिक हेल्थ रिकॉर्ड (EHR) का उपयोग सीमित है और डेटा मशीन-पठनीय स्वरूप में उपलब्ध नहीं होता। परिणामस्वरूप, भारतीय मरीजों पर आधारित सटीक मॉडल विकसित करना मुश्किल है। पश्चिमी डेटा पर प्रशिक्षित मॉडल यहां अक्सर अप्रभावी साबित होते हैं।
कानूनी और नीतिगत अनिश्चितता
डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन (DPDP) अधिनियम, 2023 ने भी अस्पतालों और स्टार्टअप्स के लिए नई चुनौतियाँ खड़ी कर दी हैं। इस कानून के तहत डेटा के उपयोग के लिए स्पष्ट और विशेष सहमति आवश्यक है, लेकिन इसके क्रियान्वयन से जुड़े नियम और संस्थाएं अभी पूरी तरह स्थापित नहीं हुई हैं। नतीजतन, संस्थान डेटा साझा करने में झिझक रहे हैं।
वैकल्पिक रास्ते और नवाचार
कुछ स्टार्टअप्स सिंथेटिक डेटा का सहारा ले रही हैं तो कुछ ग्रामीण हेल्थ कैंप के माध्यम से वास्तविक डेटा इकट्ठा कर रही हैं। उदाहरण के लिए, आर्टेलस ने मोबाइल आई कैंप लगाकर रेटिनल इमेजेज का संग्रह शुरू किया है, जिससे मरीजों को सेवा भी मिल रही है और एआई मॉडल के लिए प्रशिक्षण डेटा भी। वहीं, कुछ कंपनियां महंगे उपकरणों और इंजीनियरिंग समाधानों में निवेश कर रही हैं ताकि डेटा की सटीकता बढ़ाई जा सके।
दांव पर क्या है?
अनुमान है कि भारत का एआई-इन-हेल्थकेयर बाज़ार 2030 तक 8.7 अरब डॉलर तक पहुँच सकता है, जिसकी वार्षिक वृद्धि दर लगभग 42% होगी। लेकिन यदि डेटा संरचित, सुलभ और सुरक्षित नहीं हुआ, तो भारतीय स्टार्टअप्स वैश्विक प्रतिस्पर्धियों से पीछे रह सकती हैं और देश-विशेष की आवश्यकताओं को पूरा करने वाले समाधान विकसित करने का अवसर खो सकती हैं।