हम अक्सर सुनते आए हैं कि पहेलियाँ सुलझाना, शतरंज खेलना या दिमागी खेल करना मस्तिष्क को सक्रिय और चुस्त रखता है। लेकिन भारत के एक वरिष्ठ न्यूरोलॉजिस्ट ने अब एक और भी आसान, रोज़मर्रा में अपनाई जा सकने वाली तरकीब सुझाई है—अपना कमज़ोर हाथ इस्तेमाल करना।
सीएमसी वेल्लोर के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. सुधीर कुमार के अनुसार, दाँत साफ करते समय, खाना खाते वक्त या लिखने में अपने गैर-प्रमुख हाथ का उपयोग करना मस्तिष्क को नयी चुनौती देता है। यह साधारण-सा बदलाव मस्तिष्क के उन हिस्सों को सक्रिय करता है जो सामान्य परिस्थितियों में कम इस्तेमाल होते हैं।
रोज़मर्रा की आदतों में छुपा व्यायाम
डॉ. कुमार का कहना है कि यह तरीका न केवल आसान है बल्कि समय भी नहीं मांगता। काम के बीच, यात्रा के दौरान या घर पर किसी भी पल इसका अभ्यास किया जा सकता है। इससे मस्तिष्क की न्यूरल कनेक्टिविटी मज़बूत होती है और वह अधिक लचीला और अनुकूलनशील बनता है।
क्यों कारगर है यह तकनीक
अनुसंधानों से यह भी साबित हुआ है कि इस तरह के छोटे-छोटे बदलाव मस्तिष्क को नए रास्ते बनाने के लिए मजबूर करते हैं। इसे “ब्रेन प्लास्टिसिटी” कहा जाता है—यानी मस्तिष्क की वह क्षमता जिससे वह नई परिस्थितियों में ढलने और नए कौशल सीखने में सक्षम होता है। लंबे समय में यह आदत स्मरण शक्ति, ध्यान और मानसिक चपलता बढ़ाने में मदद कर सकती है।
व्यस्त जीवन के लिए सरल उपाय
जहाँ दिमागी व्यायामों के लिए लोग अक्सर समय नहीं निकाल पाते, वहीं यह तकनीक बिना अतिरिक्त समय दिए रोज़मर्रा की जिंदगी में सहजता से अपनाई जा सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह छोटा-सा अभ्यास मस्तिष्क को उम्र के साथ भी चुस्त रखने का एक कारगर तरीका है।