लगभग चार दशक तक ब्रिगेडियर गिडुगु हिमाश्री ने वहाँ सेवा दी जहाँ जीवन और मृत्यु के बीच केवल धैर्य और उपचार का सहारा था — अरुणाचल प्रदेश के घने जंगलों से लेकर सियाचिन ग्लेशियर की जमी हुई ऊँचाइयों तक और जम्मू-कश्मीर के आतंक प्रभावित इलाकों से लेकर सोमालिया के संघर्ष क्षेत्रों तक।
1988 में आर्मी मेडिकल कॉर्प्स में कमीशन प्राप्त करने के बाद उन्होंने सिर्फ डॉक्टर की भूमिका नहीं निभाई, बल्कि उन इलाकों में जीवन रेखा बनीं जहाँ अस्पताल से अधिक ज़रूरत उम्मीद की थी।
कठिन मोर्चों पर सेवा
उनकी तैनाती हमेशा कठिन और चुनौतीपूर्ण रही। सियाचिन, जिसे दुनिया का सबसे ऊँचा युद्धक्षेत्र कहा जाता है, वहाँ उन्होंने जवानों को हाइपोक्सिया, फ्रॉस्टबाइट और बर्फ़ीले तूफ़ानों से हुई चोटों से उबारा। अरुणाचल के दुर्गम इलाकों में उन्होंने फील्ड हॉस्पिटल्स का संचालन किया, जहाँ मौसम और भूगोल ने हर बार जीवन रक्षक कार्य को और कठिन बना दिया।
सीमा से बाहर भी उनकी सेवा पहुँची। संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन के तहत सोमालिया में उन्होंने संघर्षग्रस्त क्षेत्रों में इलाज उपलब्ध कराया, जहाँ चिकित्सा सेवा केवल उपचार नहीं बल्कि भरोसे और सहयोग का प्रतीक थी।
अनुसंधान और नवाचार में योगदान
ब्रिगेडियर हिमाश्री ने केवल मोर्चे पर इलाज ही नहीं किया, बल्कि सैनिकों के स्वास्थ्य पर अनुसंधान का भी नेतृत्व किया। लद्दाख के हाई एल्टीट्यूड मेडिकल रिसर्च सेंटर की प्रमुख के रूप में उन्होंने ऊँचाई और कठोर मौसम से जुड़ी चुनौतियों पर शोध कराया। उनके नेतृत्व में बने नए प्रोटोकॉल आज भी भारतीय सैनिकों की सुरक्षा सुनिश्चित कर रहे हैं।
सम्मान और प्रेरणा
37 वर्षों की सेवा के दौरान उन्हें चार आर्मी कमेंडेशन से सम्मानित किया गया। सहयोगियों का कहना है कि उन्होंने हमेशा धैर्य, दृढ़ता और करुणा के साथ कार्य किया।
उनकी सेवानिवृत्ति केवल एक करियर का अंत नहीं है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। विशेषकर महिलाओं के लिए, जो वर्दी में अपना भविष्य देख रही हैं, ब्रिगेडियर हिमाश्री की कहानी साहस, सेवा और समर्पण का प्रतीक बन चुकी है।