कैंसर को अक्सर धूम्रपान, शराब या अस्वस्थ खानपान से जोड़ा जाता है। लेकिन डॉक्टर चेतावनी दे रहे हैं कि प्रदूषण से लेकर आंतों के असंतुलन तक कई “मूक कारक” चुपचाप वर्षों तक इस बीमारी को बढ़ावा देते रहते हैं।
सामान्य कारणों से परे
दशकों से कैंसर रोकथाम अभियानों का ध्यान धूम्रपान, अत्यधिक शराब सेवन और खराब आहार पर रहा है। लेकिन ऑन्कोलॉजिस्ट अब उन कम चर्चित कारकों पर ज़ोर दे रहे हैं जो अक्सर सार्वजनिक विमर्श से बाहर रह जाते हैं। लंबे समय तक प्रदूषित हवा, पराबैंगनी किरणें, लगातार तनाव और असंतुलित आंतों का माइक्रोबायोम धीरे-धीरे शरीर की सुरक्षा प्रणाली को कमजोर कर देता है। ये खतरे धीरे-धीरे जमा होते हैं और समय पर पहचान न होने पर गंभीर रूप ले सकते हैं।
अदृश्य ट्रिगर्स का विज्ञान
अध्ययनों से पता चलता है कि प्रदूषण में मौजूद सूक्ष्म कण (PM2.5) खून में प्रवेश कर सूजन और डीएनए क्षति का कारण बनते हैं। एचपीवी और हेपेटाइटिस जैसी पुरानी वायरल संक्रमण भी कैंसर के लिए ज़िम्मेदार माने गए हैं, लेकिन बहुत से लोग इनके प्रभाव से अनजान रहते हैं। वहीं मोटापा और निष्क्रिय जीवनशैली हार्मोनल असंतुलन पैदा कर जोखिम को और बढ़ाते हैं। तंबाकू की तरह सीधे कैंसरजन नहीं होने पर भी ये कारक धीरे-धीरे कोशिकाओं को प्रभावित करते हैं।
सतर्कता ही बचाव
विशेषज्ञों का मानना है कि रोकथाम सिर्फ जीवनशैली बदलने से संभव नहीं है। नियमित स्क्रीनिंग, एचपीवी और हेपेटाइटिस-बी के टीके, प्रदूषण और मोटापे पर नियंत्रण के लिए जन-जागरूकता अभियान भी ज़रूरी हैं। लोगों को चाहिए कि वे अपने स्वास्थ्य में सूक्ष्म बदलावों को नज़रअंदाज़ न करें और संतुलित आहार, नियमित व्यायाम और पर्यावरणीय विषाक्त तत्वों से बचाव जैसे उपाय अपनाएँ। डॉक्टरों का कहना है कि कैंसर को केवल दिखने वाले नहीं बल्कि अदृश्य कारकों से जुड़ी बीमारी मानना समाज के दृष्टिकोण को बदल सकता है और मौतों को घटाने में अहम भूमिका निभा सकता है।