कार्डियक अरेस्ट से निपटने के लिए नई तकनीकें और सेवाएं जीवन बचा रही हैं, लेकिन इनके साथ एक बड़ा उद्योग भी पनप रहा है। सवाल यह है कि क्या यह मानवीय सेवा है या मुनाफे का साधन?
तकनीक और बाजार का संगम
हाल के वर्षों में कई कंपनियां पोर्टेबल एईडी (ऑटोमेटेड एक्सटर्नल डिफिब्रिलेटर) जैसे उपकरणों को मोहल्लों तक पहुंचा रही हैं। 4-मिनट सिटी जैसे प्रोजेक्ट के तहत इन उपकरणों को महत्वपूर्ण स्थानों पर लगाया जा रहा है, ताकि आपात स्थिति में तुरंत मदद मिल सके।
इसके साथ ही पल्सपॉइंट जैसे मोबाइल ऐप CPR-प्रशिक्षित लोगों को पास के मरीज तक पहुंचने और पंजीकृत AED खोजने में मदद करते हैं।
उन्नत उपचार तकनीक E-CPR में ECMO मशीन का इस्तेमाल कर दिल और फेफड़ों का काम अस्थायी रूप से संभाला जाता है, जिससे कई मामलों में सामान्य से कहीं बेहतर जीवित रहने की संभावना बनती है, हालांकि यह महंगा और जटिल है।
प्रशिक्षण और प्रमाणन की बढ़ती इंडस्ट्री
इस क्षेत्र का बड़ा हिस्सा प्रशिक्षण और प्रमाणन से आता है। अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन जैसे संस्थान हर साल लाखों लोगों को CPR और फर्स्ट एड का प्रशिक्षण देते हैं, जिसके जरिए न केवल जीवन रक्षक कौशल सिखाए जाते हैं, बल्कि यह एक बड़ा राजस्व स्रोत भी है।
अमेरिका में कार्डियक अरेस्ट सर्वाइवल एक्ट जैसे कानून व्यवसायों को AED लगाने के लिए कानूनी सुरक्षा देकर निवेश के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
नैतिकता, समानता और पहुंच का सवाल
इसके बावजूद, उपकरणों की उपलब्धता में असमानता बनी हुई है। स्कॉटलैंड का PADmap जैसे प्रयास यह सुनिश्चित करने के लिए बनाए गए हैं कि उच्च-जोखिम वाले इलाकों में भी पर्याप्त उपकरण हों, न कि सिर्फ संपन्न क्षेत्रों में।
आलोचक कहते हैं कि स्वास्थ्य सेवाओं में बढ़ता व्यावसायीकरण मानवीय उद्देश्य को पीछे धकेल सकता है। सरकारी फंडिंग की कमी और निजी क्षेत्र की बढ़ती भूमिका के बीच यह बहस और तेज हो रही है कि क्या जीवन रक्षक साधन हर किसी की पहुंच में रह पाएंगे।