ब्रिटेन में वैज्ञानिकों ने एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल करते हुए ऐसे आठ बच्चों का जन्म सफलतापूर्वक कराया है, जो तीन व्यक्तियों के डीएनए से उत्पन्न हुए हैं। इस उन्नत जीन-संपादन तकनीक का उद्देश्य गंभीर माइटोकॉन्ड्रियल बीमारियों को अगली पीढ़ी तक जाने से रोकना है, जो माताओं के माध्यम से संतानों में स्थानांतरित होती हैं।
इस प्रक्रिया को माइटोकॉन्ड्रियल डोनेशन ट्रीटमेंट (MDT) कहा जाता है। इसमें मां के भ्रूण से दोषपूर्ण माइटोकॉन्ड्रिया को हटाकर एक डोनर महिला के स्वस्थ माइटोकॉन्ड्रिया से प्रतिस्थापित किया जाता है। भ्रूण का 99.8% डीएनए माता-पिता से आता है, जबकि केवल 0.2% माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए डोनर से लिया जाता है।
दुर्लभ लेकिन जानलेवा बीमारियों से राहत की उम्मीद
माइटोकॉन्ड्रियल बीमारियां दुर्लभ होती हैं, लेकिन बेहद गंभीर। ये बच्चों में स्नायु, हृदय और मस्तिष्क की कार्यप्रणाली को प्रभावित कर सकती हैं और अकाल मृत्यु का कारण बन सकती हैं। पारंपरिक आईवीएफ तकनीकों से इन्हें रोका नहीं जा सकता था, लेकिन MDT ने इन परिवारों को एक नई उम्मीद दी है।
न्यूकैसल यूनिवर्सिटी की प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. फियोना मैक्लियोड के अनुसार, “यह उन परिवारों के लिए एक क्रांतिकारी बदलाव है जो वर्षों से इन बीमारियों का जोखिम ढो रहे थे।”
नैतिक बहस और नियामक नियंत्रण
ब्रिटेन पहला देश है जिसने 2015 में इस तकनीक को कानूनी मान्यता दी, लेकिन सख्त नियमों के साथ। प्रत्येक केस को इंडिपेंडेंट रेगुलेटरी बॉडी द्वारा जांचा जाता है और केवल तभी अनुमति दी जाती है जब जोखिम उच्च स्तर का हो। अब तक 30 से अधिक मामलों में इसकी अनुमति दी जा चुकी है।
हालाँकि, कुछ विशेषज्ञ इसे heritable genetic modification यानी वंशानुगत डीएनए में परिवर्तन मानते हैं और इसके दूरगामी परिणामों पर चिंता जताते हैं। वहीं, समर्थक इसे एक “सिर्फ जीवन-रक्षक हस्तक्षेप” मानते हैं, जो डोनर के डीएनए से किसी भी व्यवहार या शारीरिक लक्षण को प्रभावित नहीं करता।
आगे का रास्ता और वैश्विक रूझान
इन सफल जन्मों ने विश्व भर में वैज्ञानिक और चिकित्सा समुदाय का ध्यान आकर्षित किया है। अमेरिका और भारत जैसे देशों में अभी भी इस तकनीक पर प्रतिबंध है, लेकिन ऑस्ट्रेलिया जल्द ही सीमित परीक्षणों की अनुमति दे सकता है।
विज्ञान जगत मानता है कि यह तकनीक अत्यधिक संभावनाओं से भरी है, लेकिन इसके साथ जिम्मेदारी भी जुड़ी है। “हमें सतर्क रहना होगा—प्रगति को नियंत्रण और पारदर्शिता के साथ आगे बढ़ाना चाहिए,” डॉ. मैक्लियोड कहती हैं।