एक ताज़ा अध्ययन ने भारत के युवाओं में हृदय रोगों के तेजी से बढ़ते मामलों को लेकर गंभीर चिंता जताई है। यह अध्ययन पारंपरिक धारणा को चुनौती देता है कि दिल की बीमारियों का मुख्य कारण केवल कोलेस्ट्रॉल है। विशेषज्ञों का कहना है कि असली खतरा उन चीज़ों में छिपा है जो नियमित जांचों में नहीं दिखतीं — जैसे धमनियों में चुपचाप जमा होने वाली प्लाक, जो सालों पहले शुरू हो जाती है लेकिन बिना किसी लक्षण के शरीर में गंभीर क्षति पहुंचाती है।
गुजरात के प्रमुख सरकारी संस्थान बी. जे. मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों ने जनवरी से अप्रैल 2025 के बीच 131 मृतकों का पोस्टमॉर्टम किया। इस अध्ययन के निष्कर्ष चौंकाने वाले हैं:
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44% लोगों की धमनियों में गंभीर एथेरोस्क्लेरोसिस (plaque buildup) पाया गया।
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30% मामलों में प्रारंभिक स्तर की प्लाक जमा थी।
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और 40 वर्ष से कम उम्र के 31% लोगों में धमनियों की मोटाई बढ़ी हुई मिली, जिनमें से 15% को उन्नत स्तर की क्षति थी।
विशेषज्ञ इसे एक “मूक महामारी” मान रहे हैं — ऐसी स्वास्थ्य समस्या जो हमारे समाज में तेजी से फैल रही है लेकिन लंबे समय तक पहचान से बाहर रहती है।
एक अदृश्य संकट जो तेजी से बढ़ रहा है
अध्ययन के सह-लेखक और वरिष्ठ पैथोलॉजिस्ट डॉ. यू.आर. पारिख कहते हैं, “यह कोई संयोग नहीं है। हम 25 से 30 साल के युवाओं में भी धमनियों में प्लाक बनते देख रहे हैं। वे न तो उच्च कोलेस्ट्रॉल से पीड़ित होते हैं, न ही मधुमेह से — लेकिन फिर भी उनके दिल की धमनियां क्षतिग्रस्त होती हैं।”
एक समय में जिसे वृद्धावस्था की बीमारी माना जाता था, वह आज युवाओं के जीवन में बिना किसी चेतावनी के प्रवेश कर रही है — और जानलेवा साबित हो रही है।
सिर्फ कोलेस्ट्रॉल नहीं — असली खतरा है ‘अदृश्य प्लाक’
हृदय रोग विशेषज्ञों का कहना है कि आमतौर पर की जाने वाली स्वास्थ्य जांचें सबसे खतरनाक प्रकार की प्लाक को नहीं पकड़ पातीं — खासकर वो प्लाक जो ब्लॉकेज नहीं बनाती, लेकिन अचानक फटकर हार्ट अटैक या स्ट्रोक का कारण बन सकती है।
डॉ. जय शाह, इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट, बताते हैं, “लोग सोचते हैं कि अगर कोलेस्ट्रॉल सामान्य है तो सब ठीक है। लेकिन हम देख रहे हैं कि जिन लोगों को कभी खतरा नहीं समझा गया, उनकी धमनियां अंदर से जर्जर हैं। असली सवाल यह है कि प्लाक कहां और किस रूप में जमा हो रहा है — न कि सिर्फ कितनी मात्रा में।”
ऐसी “नॉन-ऑब्सट्रक्टिव” प्लाक अक्सर नरम और अस्थिर होती है — और युवाओं के लिए सबसे अधिक जोखिम भरी।
जीवनशैली बन रही है नई बीमारी की जड़
विशेषज्ञों का मानना है कि आज की आधुनिक शहरी जीवनशैली ही युवाओं में दिल की बीमारियों को जन्म दे रही है। देर तक बैठना, जंक फूड, नींद की कमी, अत्यधिक तनाव और व्यायाम की कमी — ये सभी कारक दिल को चुपचाप नुकसान पहुंचा रहे हैं।
डॉ. समीयर दानी कहते हैं, “हमारे पास अब 28 से 35 साल के युवा आ रहे हैं जो हार्ट अटैक के शिकार हो रहे हैं — और कई बार तो वे अस्पताल तक पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देते हैं।”
समय रहते चेतावनी और जांच जरूरी
स्वास्थ्य विशेषज्ञ अब सुझाव दे रहे हैं कि भारत में हृदय रोग की रोकथाम को लेकर हमारी सोच में बड़ा बदलाव होना चाहिए। अब 40 या 50 की उम्र नहीं, बल्कि 20 से 30 की उम्र में ही सीटी एंजियोग्राफी, कैरोटिड डोप्लर स्कैन, और सूजन मार्करों की जांच करानी चाहिए — खासकर उन युवाओं को जिनके परिवार में हृदय रोग का इतिहास है।
डॉ. शाह साफ कहते हैं, “अब इंतजार करना विकल्प नहीं है। हमें कार्डियोलॉजी की शुरुआत 20 की उम्र से करनी होगी।”
जैसे-जैसे भारत युवाओं में बढ़ते हृदय रोग और जागरूकता की कमी से जूझ रहा है, डॉक्टरों की चेतावनी अब और नजरअंदाज नहीं की जा सकती — दिल की सुरक्षा अब युवाओं की भी प्राथमिकता होनी चाहिए।