तमिलनाडु से लेकर दक्षिण भारत के कई हिस्सों तक, मंदिरों में मिलने वाला प्रसाद केवल आस्था का प्रतीक नहीं, बल्कि रोगों के उपचार के रूप में भी माना जाता है।
आस्था के साथ चिकित्सा की परंपरा
भारत में सदियों से आध्यात्मिकता और चिकित्सा का मेल देखने को मिलता है। दक्षिण भारत के कुछ मंदिर आज भी उस परंपरा को जीवित रखे हुए हैं, जहाँ भक्तों को प्रसाद केवल आशीर्वाद के रूप में नहीं बल्कि औषधीय प्रसाद के रूप में मिलता है। माना जाता है कि ये प्रसाद त्वचा रोगों से लेकर श्वसन संबंधी बीमारियों तक को दूर करने में सहायक होते हैं।
तमिलनाडु के चिदंबरम के पास स्थित वैद्येश्वरन कोइल इसका प्रमुख उदाहरण है। यहाँ दिया जाने वाला तिरुचंदुरुंडई – गुड़ और औषधीय जड़ी-बूटियों से बनी गोली – त्वचा रोग और पाचन समस्याओं के इलाज के लिए प्रसिद्ध है। भक्तों के लिए यह भक्ति और चिकित्सा का अनूठा संगम है।
जड़ी-बूटियों और अनुष्ठानों से उपचार
हर मंदिर की अपनी विशिष्ट परंपरा है। संकरण कोइल में दिया जाने वाला पुट्टू मान घाव और त्वचा रोगों में लाभकारी माना जाता है। तिरुचेंदूर मुरुगन मंदिर में पनीर पत्ते में लिपटा पवित्र भस्म दिया जाता है, जिसे तपेदिक और श्वसन रोगों के लिए कारगर माना जाता है।
श्री मुश्नम के भूवराहस्वामी मंदिर का मुश्तबी चूर्णम दीर्घकालिक बीमारियों और पेट संबंधी रोगों में इस्तेमाल होता है। दूर-दूर से आए तीर्थयात्री इस प्रसाद को घर ले जाकर परिवार के बीच बांटते हैं।
शरीर और आत्मा दोनों के लिए प्रसाद
कुछ स्थानों पर प्रसाद औषधि के साथ अनुष्ठान भी जुड़ा होता है। पालानी मुरुगन मंदिर का कबिनी तीर्थम और चंदन का लेप शरीर की गर्मी कम करने और दर्द मिटाने के लिए प्रसिद्ध है। चिन्ना बाबू समुद्रिरम मंदिर में दिया जाने वाला हर्बल जल कैंसर, कुष्ठ और तपेदिक जैसे गंभीर रोगों से रक्षा के लिए माना जाता है।
इरुक्कन कुड़ी मारियम्मन मंदिर में पवित्र जल से टैटू अनुष्ठान किया जाता है, जो चेचक, नेत्र रोग और अंगों की बीमारियों से मुक्ति दिलाने का विश्वास रखता है। वहीं थिरुनिंद्रायूर हृदयलीश्वर मंदिर का पवित्र जल हृदय रोग और रक्त संचार सुधारने से जोड़ा जाता है।
वैज्ञानिक सवाल और आस्था की निरंतरता
आधुनिक चिकित्सा इन दावों की पुष्टि नहीं करती, लेकिन ग्रामीण समाज में इन प्रसादों की लोकप्रियता आज भी गहरी है। स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी वाले क्षेत्रों में यह लोगों के लिए पहला सहारा साबित होता है।
कोट्टुर गुरुसामी मंदिर का हर्बल तेल फोड़ों और त्वचा संबंधी रोगों के लिए, जबकि कूरम कूरातझ्वर मंदिर का विशेष प्रसाद नेत्र रोगों के लिए प्रसिद्ध है।
भक्तों के लिए यह प्रसाद केवल दवा नहीं, बल्कि ईश्वर की कृपा और प्रकृति का वरदान है। जैसे पालानी मंदिर के एक श्रद्धालु ने कहा, “यह भगवान का आशीर्वाद और प्रकृति की औषधि दोनों है—उपचार तभी मिलता है जब दोनों साथ हों।”