- देश में 53 पर्सेंट से ज्यादा बच्चे Sexual Assualt के हो रहें शिकार
- ज्यादातर मामलों में माता-पिता को भी इन असॉल्ट की जानकारी नहीं
- पॉक्सो एक्ट पूरी तरह से 18 वर्ष से कम उम्र के सभी बच्चों के लिए है
- इसमें पीड़ित चाहे लड़का हो या लड़की या फिर ट्रांस जेंडर सभी शामिल
- कानून में पुलिस, सरकारी अधिकारी, डॉक्टर सभी के लिए सख्त नियम
- पीड़ित बच्चे का किसी भी प्राइवेट अस्पताल में इलाज पूरी तरह से है फ्री
क्या आप जानते हैं कि हमारे देश में हर दूसरा बच्चा किसी न किसी रूप में अब्यूज या सेक्सुअल असॉल्ट हो रहा है। दरअसल, बच्चों के प्रति होने वाले क्राइम से संबंधित एक सर्वे रिपोर्ट से पता चलता है कि देश में 53 पर्सेंट से ज्यादा बच्चे शिकार हो रहे हैं। मगर चौंकाने वाली बात है कि आधे से भी कम बच्चों की परेशानी उनके माता-पिता समझ पाते हैं। मतलब, ज्यादातर मामलों में तो माता-पिता समझ ही नहीं पाते कि उनका बच्चा किसी तरह के असॉल्ट या अब्यूज से परेशान है।
इसके अलावा जिन्हें पता चल भी जाता है तो उनमें भी एक तिहाई से ज्यादा लोग पुलिस थाने में जाकर शिकायत करने से बचते हैं और बच्चे को ही आरोपी से दूर कर पीछा छुड़ाने का प्रयास करते हैं। लेकिन, यहां सवाल सिर्फ आरोपी से बच्चे को अलग करना नहीं बल्कि उसके मन से हमेशा के लिए उसके डर और मानसिक तकलीफ को दूर करना है। इसके लिए बेहतर काउंसलिंग कराना बेहद जरूरी है। यह समझाना भी जरूरी है कि गलत काम करने वाला चाहे वो कोई अपना हो या बाहरी, सभी को सजा मिलती ही है।
इसीलिए पॉक्सो एक्ट के जरिए मामला दर्ज कराना और सजा दिलाना जरूरी है। कई बार ऐसा भी होता है कि लोग बच्चे को सरकारी अस्पताल में भर्ती कराकर होने वाली परेशानी से बचने का सोचते हैं या फिर कई बार प्राइवेट अस्पताल में ज्यादा खर्च से बचने के लिए भी दूरी बना लेते हैं। मगर आपको यह जानना जरूरी है कि बच्चों के साथ हुए सेक्सुअल असॉल्ट के मामले में उसका इलाज किसी भी प्राइवेट या सरकारी अस्पताल में पूरी तरह से फ्री में करा सकते हैं। यह कानून में है। अगर कोई अस्पताल मना करे या पैसे मांगे तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
क्या है POCSO ACT
पॉक्सो एक्ट यानी The Protection Of Children From Sexual Offences Act-2012 बच्चों के साथ होने वाले यौन अपराध या सेक्सुअल असॉल्ट व अब्यूज से सुरक्षा और सजा दिलाता है। इस एक्ट में 18 साल से कम उम्र का लड़का हो या लड़की या थर्ड जेंडर सभी शामिल है। सेक्सुअल हैरसमेंट, सेक्सुअल असॉल्ट, पोर्नोग्राफी व अन्य तरह के उत्पीड़न को इस एक्ट में शामिल किया गया है। दरअसल, आईपीसी में सेक्सुअल ऑफेंसेस से सुरक्षा के खास प्रावधान शामिल नहीं हैं। इसलिए इस एक्ट को नवंबर 2012 में लागू किया गया था।
इस एक्ट को इन खास तथ्यों से समझें
पॉक्सो एक्ट के सेक्शन-21 (1) में कहा गया है कि बच्चे के साथ सेक्सुअल असॉल्ट की जानकारी होने के बावजूद अगर माता-पिता, डॉक्टर, स्कूल प्रशासन और अन्य विश्वसनीय लोग शिकायत दर्ज कराने में लापरवाही करते हैं तब उनके खिलाफ भी कार्रवाई हो सकती है। दरअसल, ऐसा कई बार होता है कि रूटीन जांच में डॉक्टर को भी बच्चे के साथ हुए उत्पीड़न का पता चल जाता है लेकिन वह जानकारी नहीं देता है। इसी तरह हाल में ही देश के नामी एक प्राइवेट स्कूल ने भी बच्ची के साथ हुए असॉल्ट की घटना की जानकारी के बाद भी पुलिस को शिकायत नहीं दी थी। ऐसे में इस कानून की यह खासियत जानना जरूरी है।
लापरवाही बरतने पर 6 महीने की जेल व जुर्माना भी
जानकारी होने के बाद भी पुलिस को सूचना नहीं देने पर पॉक्सो एक्ट में 6 महीने की जेल या जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है। डॉक्टर के लिए खासतौर पर निर्देश है कि अगर उसे बच्चे के साथ सेक्सुअल असॉल्ट की जानकारी होती है तब पुलिस को सूचित करना उसकी लीगल ड्यूटी है।
किसी भी प्राइवेट अस्पताल या नर्सिंग होम में फ्री इलाज
इस एक्ट की सबसे खास बात है कि किसी भी बच्चे चाहे वो लड़का हो या लड़की, अगर उसके साथ दुष्कर्म जैसी घटना या अन्य चोट लगती है तो उसका इलाज कराने के लिए सरकारी अस्पताल ही जाना जरूरी नहीं है। पीड़ित बच्चे का इलाज नजदीक के किसी भी प्राइवेट अस्पताल या नर्सिंग होम में भी कराया जा सकता है। ऐसे पीड़ित बच्चे के इलाज के लिए कोई भी अस्पताल किसी भी तरह का पैसा नहीं ले सकता है। इस पॉक्सो एक्ट के सेक्शन 19 (5), सेक्शन-27 और नियम-5 में इस बात का स्पष्ट तौर पर जिक्र है। अगर पुलिस भी इससे मना करे तो आप इस कानून के बारे में बता सकते हैं।
वर्दी में पुलिसकर्मी नहीं कर सकते पूछताछ
इस एक्ट में साफ निर्देश है कि पीड़ित से पूछताछ उसके पसंद की जगह पर की जाएगी। इसके अलावा सब इंस्पेक्टर या इससे ज्यादा रैंक वाले अधिकारी ही पीड़ित से जानकारी ले सकेंगे। वह भी बिना वर्दी में ही बातचीत कर सकेंगे। इसके अलावा, अगर पीड़ित बच्ची है तो सिर्फ महिला दरोगा ही बात करेगी और मेडिकल जांच सिर्फ महिला डॉक्टर ही करेगी।
24 घंटे में CWC को सूचना देना जरूरी
इस एक्ट में प्रावधान है कि मेडिकल जांच भी पैरंट्स या फिर उसके किसी विश्वसनीय की मौजूदगी में होगी। पुलिस को यह जिम्मेदारी है कि इस घटना के बारे में 24 घंटे में चाइल्ड वेलफेयर कमिटी (सीडब्ल्यूसी) जरूर दें। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि बच्चे की काउंसलिंग की जा सके जिससे उसे इस मानसिक आघात से उबरने का मौका मिले।
एक्ट में कितनी सजा का प्रावधान है
- पेनेट्रेटिव सेक्सुअल ऑफेंस के लिए सेक्शन-4 में 7 साल से आजीवन कारावास तक और जुर्माना।
- सेक्सुअल असॉल्ट के लिए सेक्शन-7 में 5 से 7 साल तक की सजा और जुर्माना भी हो सकता है।
- सेक्सुअल हैरसमेंट के लिए सेक्शन-11 के तहत 3 साल की सजा और जुर्माना दोनों हो सकता है।
- चाइल्ड प्रोनोग्राफी के लिए सेक्शन-13 के लिए 5 साल तक की सजा और जुर्माने का प्रावधान है।