भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने बुधवार को मौद्रिक नीति समिति (MPC) की चौथी द्विमासिक समीक्षा बैठक में रेपो रेट को 5.5% पर बरकरार रखने का फैसला किया। यह लगातार दूसरी बार है जब RBI ने अपनी प्रमुख नीतिगत दर में कोई बदलाव नहीं किया।
नीतिगत रुख और RBI की रणनीति
RBI गवर्नर संजय मल्होत्रा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि समिति ने सर्वसम्मति से न्यूट्रल स्टैंड बनाए रखा है। उन्होंने बताया कि फरवरी 2025 से अब तक कुल 100 बेसिस प्वाइंट की कटौती की जा चुकी है।
मल्होत्रा ने जोर दिया कि वैश्विक स्तर पर अमेरिकी टैरिफ नीतियों की अनिश्चितता और घरेलू स्तर पर GST दरों में बदलाव जैसे कारक आगे की आर्थिक वृद्धि को प्रभावित कर सकते हैं।
विकास और मुद्रास्फीति का अनुमान
वित्त वर्ष 2025-26 के लिए वास्तविक GDP वृद्धि दर का अनुमान 6.8% लगाया गया है, जो जून के 6.5% अनुमान से अधिक है।
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) आधारित मुद्रास्फीति 2.6% रहने का अनुमान है, जो RBI के 4% ± 2% के लक्ष्य दायरे में है।
दर कटौती का ट्रैक रिकॉर्ड
फरवरी और अप्रैल 2025 में MPC ने रेपो रेट में 25-25 बेसिस प्वाइंट की कटौती की।
जून में 50 बेसिस प्वाइंट घटाकर दर को 5.5% पर लाया गया।
अगस्त 2025 में खुदरा मुद्रास्फीति 2.07% पर आ गई, जो खाद्य कीमतों में गिरावट और बेस इफेक्ट की वजह से थी।
विशेषज्ञों की राय
अर्थशास्त्री प्रो. अजय देव का मानना है,
“RBI का यह कदम दर्शाता है कि केंद्रीय बैंक वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच वित्तीय स्थिरता और निवेशकों के विश्वास को प्राथमिकता दे रहा है। नीतिगत स्थिरता से बाजार को पूर्वानुमान योग्य माहौल मिलता है, जो निवेश और विकास दोनों के लिए सकारात्मक संकेत है।”
RBI का रेपो रेट स्थिर रखने का निर्णय यह संदेश देता है कि भारत मौजूदा परिस्थितियों में मुद्रास्फीति नियंत्रण और आर्थिक स्थिरता दोनों को संतुलित करना चाहता है। अमेरिकी टैरिफ फैसलों और घरेलू कर सुधारों के बीच यह कदम उपभोक्ताओं, निवेशकों और कारोबार जगत के लिए भरोसा बनाए रखने में अहम साबित हो सकता है।