मानसून के बाद शहरों में जमा पानी अब स्वास्थ्य संकट का रूप ले रहा है। दिल्ली, मुंबई और कोलकाता जैसे बड़े महानगरों में डेंगू और मलेरिया के मामलों में तेज़ वृद्धि दर्ज की गई है। स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि नालियों, निर्माण स्थलों और घरों के आसपास रुका पानी मच्छरों के प्रजनन केंद्र बन चुका है।
शहरों में बढ़ती चिंता
नागरिक निकायों ने फॉगिंग और कीटनाशक छिड़काव को तेज़ कर दिया है। कई इलाकों में त्वरित प्रतिक्रिया दल तैनात किए गए हैं और लोगों से मच्छरदानी, रिपेलेंट्स और फुल-स्लीव कपड़े पहनने की अपील की जा रही है। “इस बार संक्रमण की तीव्रता पिछले वर्ष की तुलना में कहीं अधिक है,” मुंबई के एक वरिष्ठ स्वास्थ्य अधिकारी ने कहा।
डॉक्टरों की चेतावनी
विशेषज्ञों का कहना है कि शुरुआती लक्षण — बुखार, बदन दर्द, सिरदर्द और चकत्ते — अक्सर सामान्य वायरल फ्लू समझकर अनदेखे कर दिए जाते हैं। डॉक्टरों ने चेताया है कि देर से इलाज कराने पर डेंगू हेमरेजिक फीवर और अंगों को नुकसान जैसे गंभीर परिणाम हो सकते हैं। “लक्षण दो दिन से अधिक बने रहें तो तुरंत जांच कराएं,” दिल्ली के एक चिकित्सक ने कहा।
बचाव ही सबसे बड़ा उपाय
स्वास्थ्य परामर्श में ज़ोर दिया गया है कि लोग मच्छरों से बचाव के लिए रिपेलेंट्स का उपयोग करें, मच्छरदानी में सोएं और पानी जमा न होने दें। घर की छतों, गमलों और कूलरों में जमा पानी को तुरंत हटाना भी ज़रूरी बताया गया है।
हर साल लौटने वाला बोझ
डेंगू और मलेरिया का यह उभार एक बार फिर मानसून के दौरान शहरी भारत की कमज़ोर स्वास्थ्य संरचना को उजागर करता है। वार्षिक जागरूकता अभियानों के बावजूद अस्पतालों पर दबाव बढ़ता जा रहा है। विशेषज्ञ मानते हैं कि स्थायी समाधान — जैसे बेहतर जल निकासी और सामुदायिक सतर्कता — के बिना यह चक्र हर वर्ष दोहराया जाता रहेगा।