जम्मू-कश्मीर की युवा पैरा-आर्चर शीटल देवी ने 18 वर्ष की उम्र में इतिहास रच दिया। उन्होंने स्वर्ण पदक जीतकर दुनिया की पहली बिना हाथों वाली पैरा-ओलंपिक चैंपियन का खिताब हासिल किया, जो मानव क्षमता और खेलों की सीमाओं को नई परिभाषा देता है।
असाधारण सफर: पहाड़ों से विश्व मंच तक
शीटल देवी का जन्म जम्मू-कश्मीर के एक छोटे से गांव में हुआ। बिना हाथों के जन्मी इस बेटी ने चुनौतियों को अपनी ताकत बनाया। अपने पैरों और कंधों के सहारे तीरंदाजी की कला सीखते हुए उन्होंने वह मुकाम पाया, जिसे दुनिया ने असंभव माना था। आज उनकी सफलता भारत के दूरदराज़ इलाकों में छिपी प्रतिभाओं का प्रमाण है।
दृढ़ संकल्प और नवाचार का संगम
शीटल की मेहनत और उनके कोचों का मार्गदर्शन उन्हें विश्व स्तर तक ले गया। विशेष तकनीक और कठिन प्रशिक्षण ने उन्हें ऐसा कौशल दिया कि उन्होंने अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में प्रतिद्वंद्वियों को पीछे छोड़ते हुए स्वर्ण पदक अपने नाम किया। जीत के बाद शीटल ने कहा, “यह पदक केवल मेरा नहीं, यह उन सबका है जिन्होंने कभी हार न मानने का साहस दिखाया।”
प्रेरणा और बदलाव की मिसाल
शीटल देवी की उपलब्धि केवल व्यक्तिगत नहीं है—यह पैरा-खेलों के लिए मील का पत्थर है। उनकी जीत लाखों युवाओं और विकलांग खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा है कि शारीरिक सीमाएँ सफलता की बाधा नहीं बन सकतीं। यह विजय भारत के वैश्विक खेल परिदृश्य में उभरते स्थान को भी मजबूत करती है।