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Home»Education»चाय की दुकान और पटाखा फैक्ट्री से आईआईटी बॉम्बे तक: योगेश्वरी की प्रेरक कहानी
Education

चाय की दुकान और पटाखा फैक्ट्री से आईआईटी बॉम्बे तक: योगेश्वरी की प्रेरक कहानी

BharatSpeaksBy BharatSpeaksSeptember 17, 2025No Comments3 Mins Read
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तमिलनाडु के विरुधुनगर जिले के छोटे से गाँव पदंथल की 17 वर्षीय एस. योगेश्वरी ने तमाम सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों और शारीरिक विकलांगता को पार करते हुए आईआईटी बॉम्बे में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में प्रवेश हासिल किया है। उनके पिता चाय की दुकान चलाते हैं, जबकि माँ पटाखा फैक्ट्री में काम करती हैं। यह उपलब्धि केवल व्यक्तिगत सफलता नहीं, बल्कि उन नीतियों और सामुदायिक सहयोग की मिसाल है जो ग्रामीण भारत के बच्चों को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाते हैं।

बचपन की जिज्ञासा से शुरू हुआ सफर

योगेश्वरी का बचपन बेहद साधारण परिस्थितियों में गुज़रा। सरकारी स्कूल में तमिल माध्यम से पढ़ाई करने वाली इस बच्ची की विज्ञान के प्रति रुचि कक्षा 7 में जागी। हालाँकि, “एयरोस्पेस इंजीनियरिंग” जैसे विषय के बारे में उन्हें बाद में पता चला। राज्य सरकार की योजनाओं जैसे नान मुदलवन और कल्लुरी कनवु के ज़रिए उन्हें पहली बार यह जानकारी मिली कि आईआईटी तक का रास्ता जेईई (JEE) परीक्षा से होकर जाता है।

नीतिगत सहयोग और सामुदायिक सहारा

बारहवीं कक्षा के बाद उन्हें जिला प्रशासन द्वारा चुने गए लगभग 230 छात्रों के साथ 40-दिवसीय क्रैश कोचिंग कैंप में शामिल होने का अवसर मिला। यह प्रशिक्षण पूरी तरह अंग्रेज़ी में था, जो उनके लिए चुनौतीपूर्ण रहा क्योंकि अब तक वे तमिल माध्यम से पढ़ी थीं। फिर भी उन्होंने लगन से भाषा की कठिनाइयों को पार किया और जेईई मेन्स व एडवांस्ड दोनों परीक्षाएँ उत्तीर्ण कीं।

कठिनाइयों और सीमाओं से जंग

योगेश्वरी शारीरिक रूप से “ड्वार्फ़िज़्म” (लघु कद) की स्थिति से जूझती हैं। इसके बावजूद उन्होंने न केवल शिक्षा जारी रखी बल्कि प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं में भी उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। उन्होंने जेईई एडवांस्ड में डिफरेंटली एबल्ड (ओबीसी नॉन-क्रीमी लेयर) श्रेणी में 75वां स्थान प्राप्त किया। निजी कोचिंग या विशेष साधनों के बिना यह उपलब्धि उनकी दृढ़ता और परिश्रम का प्रमाण है।

सपना और आगे का रास्ता

आईआईटी बॉम्बे में दाखिला पाकर योगेश्वरी अब अंतरिक्ष अनुसंधान और विज्ञान की दुनिया में अपना भविष्य देखती हैं। उनकी प्रेरणास्रोत महिलाएँ अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स हैं। वे चाहती हैं कि आने वाले समय में उनका काम भारत के विज्ञान और अंतरिक्ष क्षेत्र में योगदान दे।

शिक्षा नीति और अवसर की सीख

योगेश्वरी की सफलता कई अहम सबक सामने रखती है:

  • सूचना तक पहुँच: नान मुदलवन जैसी योजनाएँ ग्रामीण छात्रों को सही दिशा दिखाती हैं।
  • मार्गदर्शन और कोचिंग: अल्पकालिक प्रशिक्षण व प्रशासनिक सहयोग असमान पृष्ठभूमि वाले छात्रों को बराबरी का अवसर देता है।
  • भाषाई समावेशन: क्षेत्रीय भाषाओं से पढ़े बच्चों को अंग्रेज़ी माध्यम की प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए तैयार करना ज़रूरी है।
  • विकलांगता समावेशन: केवल आरक्षण नहीं, बल्कि वास्तविक शैक्षिक साधन और सुविधाएँ उन्हें आगे बढ़ा सकती हैं।

योगेश्वरी की यात्रा केवल व्यक्तिगत विजय नहीं है, बल्कि इस बात की गवाही है कि जब शिक्षा प्रणाली सही सहयोग और अवसर प्रदान करती है, तो गाँव की साधारण बच्ची भी अंतरिक्ष तक सपने देखने का साहस कर सकती है। उनकी कहानी लाखों छात्रों के लिए उम्मीद की किरण है।

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