भारत में पहली बार उत्तर प्रदेश सरकार ने सस्टेनेबल एविएशन फ्यूल मैन्युफैक्चरिंग प्रमोशन पॉलिसी 2025 की घोषणा की है। यह नीति कृषि अपशिष्ट को बायो-जेट फ्यूल में बदलने का लक्ष्य रखती है, जिससे न केवल विमानन क्षेत्र का कार्बन उत्सर्जन घटेगा बल्कि किसानों को भी नई आय के अवसर मिलेंगे।
कृषि अपशिष्ट से ग्रीन ईंधन का निर्माण
नीति का मुख्य फोकस गन्ने की बगास, धान की भूसी और गेहूँ के पुआल जैसे कृषि अवशेषों को सस्टेनेबल एविएशन फ्यूल (SAF) में बदलना है। इससे दोहरी उपलब्धि होगी—एक ओर किसानों को उनके अपशिष्ट उत्पादों के लिए बाज़ार मिलेगा, वहीं दूसरी ओर विमानन उद्योग का कार्बन फुटप्रिंट कम होगा। उत्तर प्रदेश की विशाल कृषि अर्थव्यवस्था इस नीति के लिए उपयुक्त आधार प्रदान करती है।
निवेश आकर्षण और अवसंरचना लाभ
SAF नीति 2025 के तहत निवेशकों को कर छूट, भूमि सब्सिडी, राज्य जीएसटी में छूट, ब्याज सब्सिडी और विकास शुल्क माफी जैसी प्रोत्साहन योजनाएँ दी जाएंगी। साथ ही राज्य सरकार फीडस्टॉक सप्लाई चेन, ईंधन भंडारण और ब्लेंडिंग सुविधाओं के विकास पर भी काम करेगी। उत्तर प्रदेश की रणनीतिक स्थिति — पाँच अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे, आगामी नोएडा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा, एक्सप्रेसवे और लॉजिस्टिक हब — इसे निवेशकों के लिए आकर्षक गंतव्य बनाती है।
पर्यावरणीय लक्ष्य और आर्थिक प्रभाव
यह पहल भारत की जलवायु प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में मदद करेगी। सस्टेनेबल एविएशन फ्यूल न केवल कार्बन उत्सर्जन घटाएगा बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार भी पैदा करेगा। कृषि अवशेषों से बने ईंधन से आयातित जेट फ्यूल पर निर्भरता कम होगी और घरेलू स्वच्छ ऊर्जा क्षमता बढ़ेगी। सरकार अंतरराष्ट्रीय साझेदारों और विमानन कंपनियों को भी इस परियोजना से जोड़ने की कोशिश कर रही है, ताकि भारत ग्रीन एविएशन में वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा कर सके।
उत्तर प्रदेश की यह नई नीति भारत के विमानन और ऊर्जा क्षेत्र के लिए ऐतिहासिक कदम है। यदि यह योजना सफल होती है, तो यह न केवल किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार करेगी बल्कि देश को हरित ऊर्जा और स्थायी विमानन ईंधन के वैश्विक नक्शे पर अग्रणी बनाएगी।