भारत देश। हमारी मां है। हमारी शान है। हमारी संस्कृति, हमारी पहचान है। हमें अपनी संस्कृति पर गर्व है। ये गर्व तब और बढ़ जाता है जब हमारी संस्कृति से दुनिया में हमारी पहचान बन जाती है। हमारी संस्कृति इतनी महान है कि दुनिया के कई देशों में उसे अपनाया गया है। आपको शायद ही ये पता होगा कि दुनिया के 95 प्रतिशत मुस्लिम आबादी वाले देश अजरबैजान (Azerbaijan) में एक ऐसा मंदिर है जिसे दुनिया का सबसे अनोखा मंदिर कहा जाता है। दरअसल, इस मंदिर में हमेशा ज्वाला जलती रहती है। इसलिए इसे टेंपल ऑफ फायर (The Temple Of Fire) कहा जाता है। अजरबैजान में इस मंदिर को अतेशगाह (Ateshgah) कहते हैं। ये मंदिर काफी ऐतिहासिक है। जिसके बारे में जानकर आज आपको सच्चे भारतीय होने का अहसास होगा।
अजरबैजान के बाकू में बना है ये भव्य मंदिर
अज़रबैजान देश के इस मंदिर के बारे में दुनिया जानती है। इस मंदिर में मां दुर्गा का प्रवित्र स्थान माना जाता है। इस मंदिर का इतिहास 300 साल पुराना है। इस मंदिर में एक अखण्ड ज्योति जलती है। ये ज्योति ठीक वैसे ही है जैसे हिमाचल में ज्वाला जी का मंदिर है। ये मंदिर हिन्दुओं का बड़ा तीर्थ स्थल रही है। हालांकि आजकल यहां काफी सूना रहता है। ये मंदिर पूरी तरह से भारतीय शैली में है। मंदिर के चारों तरफ पत्थरों से बनी कोठरी या गुफानुमा दीवार है। इस मंदिर के परिसर में पंचभुजा आकार के अहाते में मुख्य मंदिर है।
7 छेदों से निकली है अखंड ज्योत, मंदिर पर बना है त्रिशूल, मां दुर्गा और शिव का प्रतीक
इस मंदिर में हिंदू देवी-देवताओं का वास माना जाता है। मंदिर के गुंबद पर त्रिशूल स्थापित है। इसलिए ये हिंदू धर्म में मां दुर्गा और भगवान शिव का प्रतीक है। मंदिर के बीचो-बीच अग्निकुंड है जिसमें अखंड ज्योत जल रही है। ये अखंड ज्योत अलग-अलग 7 छेदों से निकलती है। एक अग्निकुंड मंदिर के बाहर भी है। जिसे देखकर हर किसी का मन भक्तिमय हो जाता है। मंदिर में जल रही अग्नि हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा से 30 किलोमीटर दूर स्थित ज्वालादेवी के ही समान है। इस मंदिर में किसी देवी की मूर्ति तो नहीं है लेकिन वहां से निकल रहीं 9 ज्वाला ज्योत की पूजा होती है। इसी तरह अजरबैजान के इस मंदिर में भी कोई मूर्ति नहीं है।
दुनिया के इस खास मंदिर की देखें वीडियो
18वीं सदी में हुआ निर्माण, मंदिर पर लिखा है ऊॅं गणेशाय नम:
कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 18वीं सदी में हुआ है। इस मंदिर की दीवारों पर संस्कृत और अन्य भाषाओं में श्लोक लिखे हुए हैं। लेकिन मंदिर में प्रवेश करते ही सबसे ऊपर लिखा है ऊॅं गणेशाय नम:। इसे पढ़कर हम भले ही अजरबैजान पहुंच जाएं लेकिन दिलोदिमाग से भारतीयता महसूस होती है। माना जाता है कि इस मंदिर में सालों से हिन्दू, सिख और फारसी पूजा करने जाते रहे हैं। संस्कृत के अलावा मंदिर की दीवारों पर देवनागरी और गुरूमुख लिपि में शिलालेख हैं। इस मंदिर को UNESCO ने 1998 में वर्ल्ड हेरिटेज साइट (World Heritage Sites) में शामिल किया है।