महाराष्ट्र, गुजरात और केरल में भारी बाढ़ ने एक नई स्वास्थ्य चुनौती खड़ी कर दी है। इन राज्यों में लेप्टोस्पायरोसिस, जिसे आमतौर पर “रेट फीवर” कहा जाता है, के मामलों में इज़ाफ़ा देखा जा रहा है। स्वास्थ्य विभागों ने तत्काल परामर्श जारी कर नागरिकों को सतर्क रहने की सलाह दी है।
दूषित पानी से फैलता संक्रमण
लेप्टोस्पायरोसिस एक बैक्टीरियल संक्रमण है जो तब फैलता है जब चूहों या अन्य जानवरों के मूत्र से दूषित पानी शरीर में घावों या श्लेष्म झिल्ली (म्यूकस मेम्ब्रेन) के माध्यम से प्रवेश करता है। विशेषज्ञों का कहना है कि नालियां साफ़ करने वाले सफाई कर्मचारी, किसान और जलमग्न इलाकों में रहने वाले लोग सबसे अधिक जोखिम में हैं। शहरी निकाय बाढ़ग्रस्त इलाकों में सुरक्षा उपकरण वितरित करने की कोशिश कर रहे हैं।
नज़रअंदाज़ न करें ये लक्षण
डॉक्टरों का कहना है कि शुरुआती लक्षणों — जैसे तेज़ बुखार, सिरदर्द, आंखों में लालिमा और मांसपेशियों में दर्द — को हल्के में नहीं लेना चाहिए। गंभीर मामलों में पीलिया, किडनी फेल होना या बहु-अंग विफलता तक हो सकती है। “बाढ़ के पानी से संपर्क के बाद आने वाला कोई भी बुखार चेतावनी माना जाना चाहिए,” तिरुवनंतपुरम के एक चिकित्सक ने कहा।
बचाव ही सबसे बड़ा उपाय
स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने सलाह दी है कि लोग रबर के बूट और दस्ताने पहनें, गंदे पानी में नंगे पैर जाने से बचें और लक्षण दिखने पर तुरंत चिकित्सा सहायता लें। कई प्रभावित जिलों में जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं और जोखिम वाले समूहों को दवाएँ भी उपलब्ध कराई जा रही हैं।
हर साल लौटने वाली मौसमी चुनौती
यह प्रकोप मानसूनी बाढ़ से जुड़ी मौसमी बीमारियों की ओर फिर से ध्यान खींचता है। डेंगू, मलेरिया और जलजनित बीमारियों के साथ लेप्टोस्पायरोसिस भी हर साल स्वास्थ्य ढांचे पर दबाव डालता है। विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन से बाढ़ की घटनाएँ और बढ़ने की आशंका है, जिससे अस्पतालों पर बोझ और बढ़ सकता है।