यह धारणा लंबे समय तक बनी रही कि शोक एकमात्र मानवीय अनुभव है — एक ऐसा भाव जिसे केवल इंसान ही गहराई से समझ सकते हैं और अभिव्यक्त कर सकते हैं। लेकिन अब वन्यजीवों पर आधारित वैश्विक शोध और गहन प्रेक्षण इस सोच को तेजी से बदल रहे हैं। वैज्ञानिक प्रमाण सामने आ रहे हैं कि हाथी, डॉल्फ़िन, चिंपांज़ी और यहां तक कि समुद्री व्हेल जैसे कई जानवर न केवल अपने मृत साथियों को पहचानते हैं, बल्कि उनके जाने पर शोक की स्पष्ट और गहन प्रतिक्रियाएं भी दर्शाते हैं।
यह सवाल अब और प्रासंगिक हो गया है: क्या जानवरों में स्मृति, सामाजिक संबंध और भावनात्मक बंधन की इतनी गहराई है कि वे मृत्यु को समझ सकें?
हाथी: स्मृति, श्रद्धांजलि और मौन विदाई
अफ्रीकी और एशियाई हाथियों के समूहों में वर्षों से यह देखा गया है कि जब उनका कोई साथी मरता है, तो पूरा दल कई घंटों तक उसके आसपास एकत्र रहता है। वे सूंड से मृत शरीर को सहलाते हैं, मिट्टी या पत्तों से उसे ढँकते हैं, और कई बार वर्षों बाद उसी स्थान पर लौटकर मौन श्रद्धांजलि भी अर्पित करते हैं।
“यह केवल जैविक प्रतिक्रिया नहीं है,” वन्यजीव शोधकर्ता डॉ. अदिति मेहता कहती हैं। “यह एक स्मृति से जुड़ा सामाजिक और भावनात्मक अनुभव है।”
डॉल्फ़िन: मातृत्व में शोक की परतें
डॉल्फ़िन के व्यवहार ने शोधकर्ताओं को चौंका दिया है। कई बार मादा डॉल्फ़िन अपने मृत बच्चे को कई दिनों तक अपनी पीठ या थूथन पर तैराकर अपने साथ रखती है, मानो जीवन का कोई अंतिम हिस्सा छोड़ने से इनकार कर रही हो। वैज्ञानिक इसे “प्रगाढ़ मातृ शोक प्रतिक्रिया” मानते हैं।
यह व्यवहार केवल समुद्र की गहराइयों में घटित नहीं होता, बल्कि हमारी समझ की गहराई भी चुनौती देता है।
प्राइमेट्स: संबंध और विदाई का संघर्ष
चिंपांज़ी और बनमानुष, जो आनुवंशिक रूप से मनुष्य के सबसे नज़दीकी माने जाते हैं, अपने मृत साथियों के साथ अभूतपूर्व व्यवहार दिखाते हैं। वे शव के पास बैठते हैं, बाल संवारते हैं, और कई बार शव को छोड़ने से इंकार कर देते हैं। मादा चिंपांज़ी कई दिनों तक अपने मृत शिशु को गोद में लेकर चलती रहती हैं — एक अवसादपूर्ण मोह का प्रदर्शन जो भाषा के बाहर है, पर भावनात्मक रूप से पूरी तरह स्पष्ट।
समुद्री स्तनधारी: सामूहिक शोक की अभिव्यक्ति
हंपबैक व्हेल और ओरका (किलर व्हेल) में भी मृत्यु के प्रति सजगता देखी गई है। जब समूह का कोई सदस्य मरता है, तो पूरा झुंड उसके शव के आसपास गोला बनाकर तैरता है, जैसे अंतिम विदाई दे रहा हो। कई बार समूह असामान्य रूप से शांत हो जाता है — जैसे कोई दुःख सामूहिक रूप से महसूस किया जा रहा हो।
क्या यह केवल तंत्रिकीय प्रतिक्रिया है या कुछ और?
कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि यह व्यवहार महज हार्मोनल या न्यूरोलॉजिकल ट्रिगर हो सकते हैं — लेकिन बार-बार देखे गए उदाहरण यह संकेत देते हैं कि यह व्यवहार स्मृति, लगाव और सामाजिक चेतना से प्रेरित हैं। जानवरों में रिश्तों की जटिलता और उनके टूटने की पीड़ा को अब विज्ञान पूरी तरह नकार नहीं सकता।
नया दृष्टिकोण: पशु अधिकार और नैतिक चेतना
इन प्रमाणों ने पशु कल्याण नीतियों, संरक्षण प्रयासों और प्रयोगशालाओं में जानवरों के उपयोग पर नैतिक बहस को पुनर्जीवित कर दिया है। यदि जानवर भावनात्मक पीड़ा का अनुभव करते हैं, तो क्या हमें उनके प्रति अपनी दृष्टि और व्यवहार को पुनः परिभाषित नहीं करना चाहिए?