मानसून के दौरान लगातार बनी नमी और घरों में फैली सीलन अब लोगों की सेहत पर असर डाल रही है। डॉक्टरों का कहना है कि इस मौसम ने श्वसन संबंधी बीमारियों के लिए अनुकूल हालात बना दिए हैं। बेंगलुरु और हैदराबाद के कई अस्पतालों में सांस लेने में तकलीफ़, खांसी और फेफड़ों से जुड़ी बीमारियों के मरीजों की संख्या बढ़ गई है।
मरीजों में बढ़ोतरी
विशेषज्ञों के अनुसार, मानसूनी सीजन में नमी और फफूंद के कण (स्पोर्स) तेजी से फैलते हैं, जो अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और फंगल संक्रमण जैसे रोगों को उकसाते हैं। डॉक्टरों का कहना है कि जिन लोगों को पहले से फेफड़ों की समस्या है, बच्चों और बुजुर्गों में इसका खतरा सबसे ज्यादा है।
विशेषज्ञों की चेतावनी
फेफड़ों के रोग विशेषज्ञों का कहना है कि सीलन और नमी से बने वातावरण में रहने से लंबे समय तक श्वसन स्वास्थ्य कमजोर होता है। “नमी और फफूंद अस्थमा जैसी बीमारियों को गंभीर बना देते हैं। देर से इलाज कराने पर संक्रमण और बढ़ सकता है,” एक वरिष्ठ पल्मोनोलॉजिस्ट ने बेंगलुरु से बताया।
सावधानी बरतने की सलाह
डॉक्टरों ने नागरिकों को घरों को सूखा और हवादार बनाए रखने की सलाह दी है। इसके लिए डीह्यूमिडिफ़ायर का इस्तेमाल, फफूंद हटाना और नमी वाली जगहों से परहेज़ करना जरूरी बताया गया है। फेफड़ों की पुरानी बीमारी या कमजोर प्रतिरक्षा वाले लोगों के लिए यह सतर्कता और भी महत्वपूर्ण मानी जा रही है।
व्यापक मौसमी चुनौती
स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि यह बढ़ोतरी केवल व्यक्तिगत समस्या नहीं है, बल्कि मानसून से जुड़ी बड़ी मौसमी चुनौती का हिस्सा है। डेंगू और मलेरिया जैसी बीमारियों के साथ-साथ सांस की तकलीफ़ और फंगल संक्रमण ने भी अस्पतालों पर दबाव बढ़ा दिया है, जिससे मानसून के दौरान स्वास्थ्य ढांचे की मजबूती और जनजागरूकता दोनों की अहमियत सामने आती है।