भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने एक अभूतपूर्व और मानवीय पहल करते हुए अमेरिका में पढ़ रही एक भारतीय छात्रा की अंतिम सेमेस्टर की फीस अपनी जेब से भरने का वादा किया है। यह कदम तब सामने आया जब छात्रा की पढ़ाई उसके परिवार की आर्थिक तंगी के चलते अधर में लटक गई थी।
यह मामला मंगलवार को दिल्ली हाई कोर्ट में न्यायमूर्ति विकास माहाजन की अदालत में सामने आया। छात्रा के पिता रमेश कुमार — जो वर्ष 2014 से कैंसर का इलाज करा रहे हैं — ने कोर्ट में याचिका दायर की थी। उन्होंने कहा कि कैनरा बैंक द्वारा स्वीकृत एजुकेशन लोन की अंतिम किस्त जारी नहीं की जा रही है क्योंकि वे आवश्यक मार्जिन मनी जमा नहीं कर पाए हैं।
छात्रा अमेरिका के न्यूयॉर्क स्थित होफस्ट्रा यूनिवर्सिटी में पढ़ रही है और अपने अंतिम सेमेस्टर में प्रवेश करने वाली थी। बैंक से मदद नहीं मिलने की स्थिति में उसे कोर्स अधूरा छोड़ना पड़ता।
अदालत में संवेदना का दुर्लभ क्षण
मामले की गंभीरता को देखते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने एक नागरिक के रूप में हस्तक्षेप किया। उन्होंने अदालत को बताया कि वह छात्रा की अंतिम सेमेस्टर की फीस — लगभग $12,000 (करीब ₹10.2 लाख) — व्यक्तिगत रूप से वहन करेंगे ताकि उसकी शिक्षा प्रभावित न हो।
न्यायमूर्ति माहाजन ने इस मानवीय पहल की सराहना की और कहा कि यह कानूनी समुदाय के मूल्यों का प्रतीक है। अदालत ने इस मामले में योगदान देने वाले अमीकस क्यूरी नलिन कोहली और कैनरा बैंक की ओर से पेश अधिवक्ता गरिमा जैन की भूमिका की भी सराहना की।
विदेशों में पढ़ाई कर रहे छात्रों की चुनौतियाँ
यह घटना अकेली नहीं है — यह उस व्यापक समस्या की ओर इशारा करती है जिससे विदेशों में पढ़ाई कर रहे लाखों भारतीय छात्र जूझते हैं। भारत के विदेश मंत्रालय के अनुसार, दुनियाभर में 13 लाख से अधिक भारतीय छात्र उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। इनमें से अधिकांश छात्र कर्ज और सीमित पारिवारिक संसाधनों के सहारे यह सपना पूरा करते हैं।
मुद्रास्फीति, बढ़ती फीस और ऋण शर्तों के कठोर नियम अक्सर छात्रों को संकट में डाल देते हैं। इस परिप्रेक्ष्य में, तुषार मेहता की यह व्यक्तिगत सहायता न केवल एक छात्रा के लिए संजीवनी बनी, बल्कि यह भी दिखाया कि प्रशासनिक संवेदनशीलता से किस प्रकार जीवन बदला जा सकता है।